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उसे लेना हो, एक नफे निश्चन कन्द पार बढी बराबर दिया करे । वार बार का नया बन्दोबस्न प्रजा को मारे जालना है। ज़मीन की मालगुजारी के बार बार बढ़ने से प्रजा की प्रबन्या दिन का दिन बिगड़ती जाती है। वैर यदि यह भी सरकार को न मंजूर हो तो ज़मान की पैदावार को कीमत के अनुसार यह मालगुजारी नियत करे । यदि कामत बढ़ जाय तो वह अपनी मालगुजारी को शरह भी बढ़ा दे और यदि घट जाय तो घटा दे। पर इन दोनों में से एक भी बात सरकार को मंजर नहीं।

पचास फीसदी वाली शमा भी तो अचल नहीं रहने पाई। सरकार का ग्यच चढ़ जाने से उसे रूपये की जन्म हुई। अधिक रपया ग्रावे कहाँ, से? जो माल विलायत से इस देश में आता है उस पर यह डाट कर, कर. न्द्रगाने से नही । म्योंकि यदि उस पर यधेप कर लगाने की सरकार चेष्टा करं नो इंगलं बालों को हानि हो और यहां तुमुल वायुद्ध शुरू हो जाय । इसमें उसने यहाँ के दीन दुनिया किसानों ही को निचोड़ने की ठानी। इसने त्या किया कि पटवारी, चौकीदारी. स्कुल शाफा पाने आदि के कई मय कर जमीन पर लगा दिये और उन्हें भी मालगुजारी के साथ वसूल करने लगी । कहाँ नो प्रजा की पुकार थी कि ज़मीन का कर घटाया जाय, कहाँ उम्पने पार, बढ़ा दिया! फल यह हुआ कि मालगुजारी की शरह कहीं कहीं फ्री सदी हो गई, कहीं ५८ और कहीं !! यदि इस देश के मुन्नत्ति रस को निचोड़ना ही था ना पार किसी मद मे निचाइन, जहाँ अधिक गीलापन हरता। निचोड़ा कहाँ से जहाँ मुस्किल से दो चार बूंद निकले ।

मी जै० ऑडोनल साटय पारलियामंट-" द्वाउस आध कामन्स"- के एक मेम्बर है। पापन २८ मई, १९०७ का लिया हुआ अपना एक लेख समाचार पत्रों में प्रकाशिन किया है । इसमें आपने दिग्वाया है कि जमीन केलगान की ज़ियादती के कारगा हिन्दुस्तान की माम्मत्तिक अवधा कटौ तक दिनों दिन अधिक माजुक हाती जाती है। आप के लेख में कुछ बान दम प्रकाशित करते हैं।

पन्द्रह वर्ष हुए, पंजाब की गवर्नमेंट के फ़ाइनानशियल कमिश्नर, एस पस. धारवन साहव, ने लिखा था कि पंजाब में कितनी ही जगहों को प्रजा दरिद्रता में इतनी इन गई है कि उसका उबार होना अब असम्भव है। सरकारी मालगुजारी देने के लिए महाजनों से फ़र्ज़ लेने को के कारण