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मालगुजारी।

गाय दुपा । उस साल जमीन की मालगुजारी ४,८७,५०,000 रूपये थी। परन्तु १८७१ में. अर्थात् कोई २० वर्ष बाद, वह ६,७५,80,000 हो गई। कोई २ करोड़ रुपये की बढ़ती हुई !

एक राजर्स नाम के एक साहब बंबई के गधर्मर की कौन्सिल के मेम्बर थे। १८९३ में उन्होंने "अंडर मेकंठी प्राय स्टेट कार इंडिया" को एक पत्र लिया था। उसमें चे लिवन । कि वर्ष में, अर्थात् १८८० से १८०० तक, मालगुजारी चम्ल करने के लिए ८,४०६३ प्रादमियों की १९,६३३६४ एकड़ जमीन मादाम करनी पड़ी! ज़मीन नीलाम करने से मतलन करता नीलाम करने में है। पर इस नीनाम में भी सरकार की मालगुजारी वसूल . न हुई। नव उसने इन लोगों का माल असबाब भी नीलाम करके काई ३० लाग्य रपया अमूल किया । तब कहीं सरकारी मालगुजारी चुकता हुई !! पर यह जो इतनी ज़मीन नीलाम हुई उमे लिया किसने, आप जानने ? ७,७२.१४२ एकड़ ना प्रजाने किली नगद लेटी. बाक़र के मरीदार हो न मिले ! नब बाट अपशिष्ट जमीन सरकार के लिए ली गई । अर्थात् नीलाम की हुई जमीन में से १० फी सदी का किसी काश्तकार ने लेना मंजर न किया ! अन्न ग्याल करने की बात है कि यदि इस जमीन में कुछ भी मुनाफ. की सूरन हानी नो बह निकने से क्यों रह जाती ? उसमें कुछ भी बम न था। इसी से ना उसे जोतने बाली संयत का घर द्वार बिक गया । बंबई प्रान्त काही या हाल न समझिए । मन्दराल का इससे भी बुरा है । प्रोडौनल साहब कहन हैं कि सिर्फ १० वर्ष में मदरास प्रान्त के कृषिजाबी लोगों का एक अमांश, मालगुजारी न देसकने के कारगा, जमीन, घर, द्वार.. चनन, मांडे, चेचकर "भिक्षा देहि" करने लगा।

१९०७ के प्रारंभ में एक बार प्रोडौनल साहब ने वर्तमान : सेटरी आब स्टेट," मा सागव. में पूछा कि हिन्दुस्तान में मालगुजारी को भारत क्या है ? उत्तर मिला--"मार्च वाद देकर जो कुछ बच रहता है उसका आधा"। अर्थात् यही ५० सी सदी । पर इसमें, पुलिस, स्कूद, पटवारो, चौकीदारी, आवपाशी और सड़कों आदि के लिए जो कर प्रज्ञा से लिया जाता है वह शामिल नहीं है । यह जोड़ लिया जाय तो इ० र सदी तक नौचत पहुँचे। इसके कुछ दिन बाद पूर्वोक्त साहब ने मध्य प्रदेश के विषय में कुछ पास प्रश्न पूछे। तब माले साहब ने फरमाया कि वहाँ ५० फी सदी से कम पार.