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सम्पत्ति-शास्त्र।

पेसी सैकड़ों बातें हैं जो देश की सम्पत्ति बढ़ाने की बाधक हैं । अत: पघ यदि हिन्दुस्तान की आर्थिक अवस्था हीन हो; यदि उसके अधिकांश निवासियों के दोनों चक, पेट भर खाने के न मिले; एक साल पानी न बरः सने पर, दरिद्रता के कारण, यदि हजारों अादमी भूखों मर जायें तो कोई आश्चर्य की बात नहीं। । यहां के व्यापार कर देखिए । चिलायत की चीज़ से यहां की बाज़ारे भरी हुई हैं । शुरू शुरू में इगलिस्तान की गवर्नमेंट ने यह फैकपड़े की रफ्तनी कैर, चिलायत में उसपर कड़ा महसूले लग कर, विलकुल ही रोक दिया । यहाँ का व्यापार-यहां का फलाकंाश–मागया। अब जब उसके पुनरुज्जीवन की और लोगों का ध्यान गया है तब यथेष्ट कर लगा कर विलायती बस्तुओं की आमदनी रोक्री नहीं जाती । अगर किसी विलायती चीज़ पर कुछ महसूल है भी तो इतना कम है कि न होने के बराबर है। एक समय था कि इच, प्ररथ और अंगरेज़ संदिग्गर इस देश की बनी हुई चीज़ों से सारे योरप के बाज़ार पाट देते थे। पर अब वह सब स्वम हो गया है। अंन ती सिर्फ का माल, विशेष करके प्रज्ञा के पेट पालने का अनाज, दैगन्तर केा जाता है और अकाल पड़ने पर यह चाल का दाने दाने के लिए मुहताज होना पड़ता है। प्रज्ञा-घल्सले राजा को चाहिए कि इस अन्धेर के के। | प्रतिवन्ध-हीन व्यापार से इस इंश की बड़ी हानि पहुंच रही है--इसको आर्थिक दशा दिनों दिन खराब हो रही है। ईगलंड एक छोटा सा टापू है। उस ग्रानं पीने तक की चीजों के लिए भी और देश का मुँह ताकना पड़ती ६ । अतएव यद यदि इस तरह के व्यापार का पक्षपाती हों तो हो सकता हैं । हिन्दुस्तान फ्यों हो ? वह तो अपने व्यवहार को प्रायः सारी चीजें आपही पदा कर सकता है। यदि इस देश में बाहर से आने वाला माल कर लगा कर रोका जाय, था उसकी ममदनी कम की जाय, तो यहाँ की आर्थिक अचला को बहुत जल्द उन्नति हो जाय । इँगलंड ने खुदही शुरू शुरू में यह पक्ष की थी । हिन्दुस्तानी माल पर उसने कड़े से कडा कर लगा कर चिलायत में उसकी आमदनी रोक दी और चिलायती माल विनाक', या बहुत थेड़ा केर लगा फेर, हिन्दुस्तान में भर दिया। फल यह हुआ कि यहाँ का प्रायः सारा व्यापार और प्रायः सारे उद्योगधन्धे मारे गये। धही ईगलैड अब हमारे