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सम्पत्ति-शास्त्र।

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यदि किसी काम के एक ही आदमी करता है तो उसे एकाकी व्यवसायी कहते हैं। ऐसे काम में अकेले एक ही आदमी की पूंजी लगती है और वही सारे हानि-लाभ का जिम्मेदार होता है। हां, यदि जरूरत है, तो यह एजेंट, मैनेजर, मुनीम, कारिन्दै आदि जितने चाहे रख सकता है । पर उनको अपनों तनाबाद से मतलब रहता है, कारोबार के हानि-लाभ से नहीं। अपराध करने पर मालिक उन्हें जुरमाना कर सकता है, उनकी वनाए घटा सकता है, उन्हें बरखास्त तक कर सकता है। इसी तरह उनके काम से प्रसन्न हो कर मालिक उन्हें इनाम दे सकता हैं और उनकी तरक्की भी कर सकता है। पर ये सब बातें उसकी इच्छा पर अवलम्बित रहती हैं। उसके नौकर यह नहीं दावा कर सकतें कि आपके अपने कारोबार में हो इतना मुनाफ़ा हुआ हैं उसका इतना हिस्सा हमको भी मिलना चाहिए । जौ काम उनके सिपुर्द रहता है उसे करते हैं और अपनी तनाह लेते हैं । हानि-लाभ से उन्हें कुछ सरोकार नहीं रहता ।।

जो आदमी किसी काम को अकेले नहीं कर सकता वह किसी समय और आदमियों को भी अपने कारोबार में साझी कर लेता है । अथवा पहले ही से कई आदमी मिल कर काम शुरू करते हैं । इस तरह काम करने बालों की साझीदार व्यवसायी कहते हैं । जिन व्यवसायों में इतनी अधिक पूँजी दरकार होती है कि एक आदमी अकेले नहीं लगा सकता, या देखभाल और बच्चे आदि करने के लिए एक से अधिक अदमियों की ज़रूरत हैती है, उन्हीं व्यवसायों के कई आदमी साझे में करते हैं । प्रवन्ध अदि का काम नौकरों से भी हो सकता है, पर जितना सेच समझ कर और जी लग कर किफ़ायत के साथ मालिक काम करता है उतना नौकर बहुधा नहीं करते। किसी किसी कारोबार में भिन्न भिन्न प्रकार की योग्यता दरकार होती है। पर एक ही आदमी में सब प्रकार की योग्यताओं और गुणों का होना प्रायः कम देखा जाता है। इसी से यदि भिन्न भिन्न गुण और येन्यता वाले दो चार आदमी साझे में काम करते हैं तो काम भी अच्छी तरह चलता है और लाभ भी होता है । कल्पना कीजिए कि किसी फे शक्कर बनाने का एक कारखाना खोलना है। यह शक्कर के गुण-दोषों के तो अच्छी तरह जानता है; पर जिन कलों से शक्कर बनाई जाती हैं उनका कुछ भी ज्ञान नहीं रखता; और न हिसावकिताब ही रखने में होशियार