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सम्पत्ति-शास्त्र ।


जिसे न करना हो न करे, तो वे कानून की रूसे अपराधी नहीं । जैसे मज़दूरों को इस बात का पूरा अधिकार है कि उनकी इच्छा हो फाम करें, न हो न करें, वैसे ही कारखानेदारों को भी अधिकार है कि जिसे चाह नौकर रक्खें, जिसे न चाहे न रक्खें । परन्तु यदि दोनों पक्षों में कोई इकरारनामा हो जाय और उसमें यह तै हो जाय कि अमुक उज़रत पर इतने साल तक इतने घंटे काम करना ही चाहिए तो दो में से किसी पक्ष को उसे तोड़ने का अधिकार नहीं । इक़रार की गई मुहत गुजर जाने पर मजदूर हड़ताल पर कारखानेदार द्वारावरोध कर सकते हैं, उसके पहले नहीं । इकरारनामे को शत यदि बीच ही में तोड़दीजायें तो तोड़ने वाला पक्ष कानून के अनुसार दण्डनीय हो सकता है। सम्पत्ति-शास्त्र का सिद्धान्त है कि जहां तक है। सके उत्पादन-व्यय बढ़ने न देना चाहिए । मजदूरों को अधिक उजरत देना मानो उत्पादन-व्यय को बढ़ाना है--उत्पत्ति के खर्च को अधिक करना है। प्रतपय मजदूरों को जो उजरत मिलती चली आ रही है उसे, विना प्रबल कारण उपस्थित हुए, बढ़ा देना भी तो बुद्धिमानी का काम नहीं । यदि कारखानेदार को सन्देश हो कि जो उजरत दी जा रही है कम नहीं है, तो हड़ताल हो जाने पर इस बात का सहज ही में निश्चय हो सकता है कि कारखानेदार का सन्देह सही था या ग़लत । जो उजरत की शरह कम नहीं होती है। हड़ताल करने चालों की जगह पर काम करने के लिए, उतनी ही उजरत पर, उतना ही और उसी तरह अच्छा काम करने वाले और मज़दूर मिल जाते हैं। पार जो कम होती है तो नहीं मिलते, या बहुत बड़े मिलते हैं। इससे उजरत की शरह के उचित या अनुचित होने की परीक्षा का हड़ताल पक अच्छा साधन है । इस दृषि से हड़ताल बुरा नहीं । द्वारावरोध से भी यह बात सावित हो जाती है कि कम उजरत पर काम करने वाले मजदूर और कारीगर मिल सकते हैं या नहीं। परन्तु समष्टि रूप से सब बातों का विचार करके यही कहना पड़ता है कि हड़ताल से सम्पत्ति के उत्पादन में बड़ा विघ्न आता है। उससे यदि कभी लाभ होता भी है तो वटुत कम ; हानि ही अधिक होती है । अतएव हड़ताल करना निंद्य है। साल में ५२ हफ्ते होते हैं। यदि ४ हप्ते काम बन्द रहे तो १३ भागों में एक भाग चोजें कारस्थानों में कम तैयार हों।