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सम्पत्ति-शास्त्र।

नुसार वह हर हफ्ते या हर महीने बैंक से बार बार कर्ज लिया करे तो इस बात को बैंक मंजूर न करेगा। कारण यह है कि इस तरह कर्ज लेने में लिखा पढ़ी आदि के अनेक झंझट करने पड़ते हैं। इसीसे बैंकर, लोग दूसरे प्रकारानुसार लिये गये फर्श पर कुछ अधिक सूद लेते हैं और तीसरे प्रकारानुसार लिये गये पर कुछ कम | दूसरे प्रकार को अंगरेजी में "प्रोवर ड्राफ्ट अपान करंट अकीर" (Orer Drnt Upon Current Account) और तीसरे को "लोन अकौंट"(Loan Account) कहते हैं। तीसरे प्रकारानुसार कर्ज लेने का एक और नाम "कैश क्रेडिट" (Cash Credit) है। इस तीसरे प्रकार में बिना कुछ रुपया जमा किये ही, अपनी था किसी और की साख पर, अथवा कोई चीज गिरची रखकर, बैंक से कर्ज लेना पड़ता है। ध्यसायी प्रादमियों को "कैश क्रेडिट" की रीति से रुपया कर्ज लेने में बहुत सुभीता होता है। क्योंकि उनको मजदूरों पर मुलाज़िम को सनरवाह देने पार अनेक प्रकार के दूसरे सर्च करने के लिए हमेशा ही कुछ रुपया दरकार होता है । यह रुपया यदि वे अपने कारोबार में लगायें तो उनको बीस पञ्चीस रुपया सैकड़े के हिसाब से मुनाफ़ा हो सकता है, पर बैंक से इस से बहुत कम सूद पर रुपया मिल सकता है । इस से व्यवसायी आदमी घर का रुपया व्यवसाय में लगा कर बाहरी खर्च के लिए चे बैंक से कर्ज ले लेते हैं। इस तरह कर्ज लेकर चे उस रुपये को अपने रोज़गार में भी लगा सकते हैं। हाँ रुपया पाने के लिए साख या गिरवी रखने के लिए जायदाद ज़रूर चाहिए । थोरप में कितने ही देश ऐसे है जहाँ "फैश क्रेडिट" की बदौलत अनेक प्रकार के उद्योग-धन्धे • होते हैं। हजारों आदमी ऐसे हैं जिनके पास कौड़ी भी न थी । पर बैंकों से "कैश क्रेडिट" लेकर उन्होंने व्यवसाय शुरू किया और अपनी योग्यता और बुद्धिमानी से धीरे धीरे अमीर हो गये । यदि हिन्दुस्तान के बड़े बड़े शहरों में स्वदेशी बैंक खुल जायें, और विश्वसनीय आदमियों को "कैश क्रेडिट" के तरीके से थोड़े सूद पर कर्ज मिलने लगे, तो व्यापार-व्यवसाय में बहुत उन्नति हो। मामूली महाजनों से जो फर्ज लिया जाता है उस पर बहुत सूद देना पड़ता है। देहात में तो सूद की शरह और भी अधिक है । घेचारे किसान इतने गरीन है कि ये-फ़र्ज़ लिए उनका काम नहीं चल सकता । और कर्ज