पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/२६३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२४ . सम्पति-शास्त्र। तीसरा परिच्छेद । बीमा । संसारमैन मालूम कितनी दुर्घटनायें ऐसी होती हैं जिनसे मनुष्यों की बड़ी बड़ी हानियों हो जाया करती हैं। इस तरह की हानियों से बचने का प्रत्यक्ष उपाय एक तो किया नहीं जा सकता, और यदि किया भी जाय तो प्रायः व्यर्थ जाता है। मौत को कौन रोक सकता है ? अकस्मात् आग लगने से होनेवाली हानि का पहले से कान प्रतिवन्ध कर सकता है ? समुद्र में सहसा तुफान आने से जहाजों में लदे हुए लाखों रुपये के माल को डूबने से बचाने में कौन समर्थ हो सकता है ? ये पेसी दुर्घटनायें हैं जिनसे बचना मनुष्य के लिए साध्यातीत है। इसी लिए उनसे होनेवाली हानियों की पूर्ति के लिए मनुष्यों ने एक अप्रत्यक्ष युक्ति निकाली है। उसका नाम है बीमा-विधि । जिन लोगों को रजिस्टरी चिट्टियों के भीतर नोट या पारसलों के भीतर काई कीमती चीजें भेजना पड़ती होंगी चे बीमे के नाम से अधिक परिचित होंगे। पेसी चिट्ठियां या पारसल जब डाक से भेजे जाते हैं तब डाक घरवाले उन पर अधिक महसूल लेकर इस बात को ज़िम्मेदारी लेलेते हैं कि यदि वे चीजें खो जायेंगी तो सरकार उनकी कीमत देदेगी। जिस बीमा-विधि का संक्षिप्त वर्णन हम इस परिच्छेद में करने जाते हैं वह भी कुछ कुछ इसी तरह का है। इस बीमा-विधि के तीन प्रकार है- अग्नि-बीमा, वारि-बीमा और जीवन बीमा । किसी इमारत, मकान, दुकान या गोदाम अथवा माल-असबाब मादि के जल जाने पर होनेवाली हानि की पूर्ति कर दी जाने के लिए जो वोमा किया जाता है उसका नाम अग्नि-धीमा है । समुद्र में जहाजों के दब जाने से जो माल-असवाब की हानि होती है उससे बचने के लिए जो बीमा होता है उसे वारि-चीमा कहते हैं। और मनुष्य के मरने से उसके कुटुम्वियों या थारिसों की जो हानि होती है उसके कुछ अंश की पूर्ति जिस विधि से होती है उसे जीवन बीमा कहते है। जैसे और अनेक प्रकार के व्यवसाय है वैसे ही बीमे का भी व्यवसाय है। यह व्यवसाय बहुत करके सम्भूय-समुत्थान के नियमानुसार किया जाता है। कुछ आदमी मिल कर एक कम्पनी खड़ी करते हैं और बीमे का ध्यव-