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सम्पत्ति-शास्त्र।

रह जाती है। इस से चित्त को बहुत कुछ शान्ति मिलती है। धोड़ी आमदनी वालों को कोई अच्छी रकम जमा कर लेना बहुत ही कठिन काम है। प्रायः देखा गया है कि कम आमदनीवाले लोग कुछ भी नहीं बचा सकते । इधर आया, उधर उड़ा । उनका रुपया योहाँ उठ जाता है और बचत खाता प्रायः कारा ही रह जाता है। अथवा यदि थोड़ा सा रुपया जमा भी हुआ तो लड़के लड़कियों के काम-काज में खर्च हो जाता है। जीवन-बीमा करा लेने से ऐसे लोगों को, लाचार होकर, कम्पनी को किस्त देने के लिए कुछ बचत करनी ही पड़ती है। उससे उन्हें कुछ विशेष कष्ट भी नहीं होता। पयोंकि वास्तविक आमदनी में से बीमे के मासिक चन्दे को घटा कर जो कुछ शेष रह जाता है उसी को वे लोग अपनी असल आमदनी समझते हैं । “भूकम-टैक्स" की तरह यह चन्दा भी प्रामदनी खाते में मानो जोड़ा ही नहीं जाता। यदि कहिए कि विना ऐसे बन्धन के ही कोई निश्चित रकम हर महीने क्यों न बचा रक्खी जाय ? तो यह धात उन लोगों से नहीं हो सकती। क्योंकि उनमें इतना दृढ़ निश्चय ओ नहीं। 'फिर समय समय पर, अनेक बाधायें उपस्थित होती हैं जिन्हें दूर करने के लिए रुपये की ज़रूरत पड़ती है। इससे बीमा कसलेने से एक निश्चित रकम वचा रखने का हार खुल जाता है, और वह कुछ खलता भी नहीं। आफ़त-विपत में वीमे की "पालिसी" काम भी प्रासकती है। उसके आधार पर मुनासिब सूद पर कर्ज मिल सकता है। संभव है, ज़रूरत पड़ने पर, बिना "पालसी" के कर्ज न मिलता; फिर चाहे इज्जत ही क्यों न मिट्टी में मिल जाती। ___ अपने पास, अथवा बैंक आदि मैं, जमा किया हुआ रुपया, थोड़ी सी भी जरूरत पड़ने पर, उठ जाता है । पर वोम में लगा हुआ रुपया मीयाद के पहले नहीं मिलता । इससे उसका खर्च हो जाना कठिन है। __ अकाल मृत्यु हो जाने पर चौमे से अच्छा लाभ हो जाना भी सम्भव है। यद्यपि ऐसा लाभ उठाना कदाचित् कोई भी पसन्द न करेगा; तथापि, होम- हार हो जाने पर, एक अच्छी रकम हाथ लग जाने से लड़के वालों के थोड़े बदुत मांस पुछही जाते होंगे। इस प्रकार के लाभ के लिए बीमा किया गया मनुष्य जितनाही जल्द मर जाय उवनाही अधिक लाभ होता है।