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सम्पति-शास्त्र।

, बीमा किये गये मनुष्यों में से हजार पीछे तीन, चार या पांच से अधिक मनुष्य प्रति वर्ष कमउम्री में न मरते होंगे। और वीमा-कम्पनियों को कदा- चित् सौ दो सौ बीमा किये गये मनुष्यों में से, साल भर में, केवल एकही माध आदमी के कारण विशेप हानिउठानी पड़ती होगी। शेप मनुष्य उनके फेश को धरावर बढ़ातेही रहते होंगे। इन बातों से यह साफ़ ज़ाहिर है कि बीमा करानेवालों को आर्थिक-हानि का होना बहुत संभव है। पर आर्थिक- लाभ बहुत कम है और वह लाभ भो कैसा कि जानहीं पर बीत जाय । इससे जिन लोगों के घर में खाने भर का भी सुभीता हो, जिनकी कमउम्री में अकाल मृत्यु हो जाने पर उनके लड़के वालों के पालन-पोषण की तक- लीक होने का रूटका न है, जो ऐसे दृढ़चित्त न हो कि बिना किसी विशेष बन्धन के उन्हें कुछ पंचा रखना असंभव सा हो, और जिन्हें मृत्यु पर जमा खेलने की लोलुपता न हो, उनको जीवन बीमा कराना, जब तक कि कोई गुप्त भेद न हो, एक दम अनावश्यक, अनुपकारी पार हानिकर समझना चाहिए। नीचे हम केवल दो नकशे दिये देते हैं जिन पर ध्यान देने से पाठकों को हानि-लाभ का ब्यौरा अच्छी तरह पास हो जायगा । इनमें देानों बीमे पांच पांच बजार रूपये के, तीस वर्ष की अवस्था में कराये गये, माने गये हैं। इन में से पहले मैं ५५ साल पूरे होने अथवा उसके पहले मृत्यु हो जाने पर तत्कालही, रुपया पाने की शर्त है और दूसरे में केवल मृत्यु के बाद । हमने इनमें व्योरेवार दिखा दिया है कि चीमा कराने के बाद कितने दिनों में मर जाने से कितना रुपया उस समय तक देना पड़ेगा और उससे क्या लाभ अधवा हानि होगी। पहली किस्त अदा करने के साल भर पीछे से साल साल का सूद हमने केवल ४ रुपये संकड़े सालाना के हिसाब से जोड़ा है। यद्यपि इससे अधिक सूद बहुत प्रामाणिक बैंकों से मिल सकता है और जमींदारी खरीद लेने से.कम से कम ५ रुपये सैकड़ा सालाना मुनाफ़ा होता है गार पन्द्रह बीस वर्ष में उसका मूल्य योढ़ा दूना हो जाना संभव है।