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सम्पत्ति-शास्त्र।

________________ १९०५ ईसधी कै दिसम्बर में जे कांग्रेस (जातीय महासभा) बनारस में : हुई थी उसमें माननीय गोखले महाशय ने इस बात को बहुत अच्छी तरह से समझाया था इस देश में हूँ जो बहुत ही कम है। इससे जिनके पास पूँजी है वे उस पर बहुत अधिक सुद पाने की इच्छा रखते हैं। और बारीक कपड़े के व्यवसाय में जितना मुनाफ़ा हो सकता है उसे से अधिक और व्यवसाय में होने की संभावना रहता है । इसी से लोग बारीक कपड़ा बनाने को व्यवसाय नहीं करना चाहते । इस देश में सफेद शक्कर भी बन सकती है, और कम सफेद भी । पर कमें सफेद शकर बनाने में लागत अधिक नहीं लगती । इस से इसे तो लोग अधिकता से बनाते हैं, परन्तु खूब स्वच्छ और सफेद शकर कम बनाते हैं। जर्मनीघाले धाड़े ही मुनाफे से सन्तुष्ट हो जाते हैं, इससे च की सफेद शकर हिन्दुस्तान में ढोई चली आती है। यहां उसे बनाने का झंझट लोग कम करते हैं, क्योंकि थोड़े ही मुनाफे से उन्हें सन्तोष नहीं होता। जब उन्हें और व्यवसाये में अधिक मुनाफ़ा होता है। तब थाई मुनाफे का अन्नसाय घे क्यों करें ? हिन्दुस्तान में विदेशी शार अधिक आने के और भी कई कारण हैं; पर जिस कारण का उल्लेख यहाँ किया गया उसे सर्व प्रधान समझना चाहिए । खुशी की बात है, कुछ दिनों से कम खर्च में अच्छी शर्वर बनाने की तरकीचे काम में लाई जानै लगी हैं। अतएव, आशा है, अन्न लोग पहले की अपेक्षा इस व्यवसाय में अधिक जो लगायेंगे । देश जिस व्यवसाय में अधिक मुनाफा देखता है उसी का करता है। स्पेन में शराव बहुत बनता है। उसे स्पेनवाले इंगलैंड भेजते हैं और उसके बदले ईंगलंड से कपड़ा मॅगाते हैं। कपड़ा तैयार करने में जो खर्च इँगलेंड में बैढ़ता है, पेन चालै यदि उसे अपने देश में तैयार करें तो वहाँ भी शायद छह अन्य मैले । परन्तु कपड़े की अपेक्षा शव तैयार करने में उन्हें अधिक लाभ होता है। इसी से थे शराब का ही व्यवसाय अधिक करते हैं । हिन्दुस्तान में बाघल कम नहीं होता; परन्तु वहुधा वह ब्रह्मदेश से बंगाल में आता है । इसका कारण यह हैं कि बंगाल में जूट बहुत होता है। जूट के व्यवसाय में चहाँ के व्यवसाय अधिक लाभ उठाते हैं। इससे वे चावल पैदा न करके जूट पैदा करते हैं और उसे ब्रह्मा के भेज कर बदले में चावल है लेते हैं । सारा यह कि जिस चीज़ के पैदा करने में लाभ अधिक होता