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सम्पत्ति-शास्त्र।

इंगलैड ही से नहीं, किन्तु सारे गैरप, अमेरिका और एशिया के देशों से हिन्दुस्तान का जे व्यापार हुआ है उसका हिसाव इस लेबे में हैं । अर्थात् हिन्दुस्तान ने विदेश के जितना माल भेजा व यात में, और विदेश से जितना माल लिया घह अायात में शामिल है । और देशों की अपेक्षा इंगलैंड और हिन्दुस्तान ही के दरमियान अधिक व्यापार होता है। इस व्यापार का औसत केाई आधे के क़रोध है । ॐ कपड़ा घिदेश से यच्च आता है वह तैः प्रायः सभी गलैंड से आता है। उसका औसत ८८ फ़ी सद हैं । अर्थात् १०० थान या १०० गट्टे कपड़े में १२ थम या १५ गट्टे कपड़ा बैर देशों से आता है, बाक़ो ८८ थान या ८८ गई इग्लैंड से आता है। इसी तरह और माल में भी बहुत करके ईंगलेंड ही का नंबर ऊँचा रहता है । खैर माल कहीं भी जाय, अथवा कहीं से आवे, फल प्रायः वहीं होता है। ऊपर के हिसाब से मालूम होगा कि जितना माल हिन्दुस्तान से जीता है उससे बहुत कम विदेश से आता है। १९०३-०४ में यरत की अपेक्षा आयात भाल ४४ करोड़ का कम अाया । १९०४-०५ में कुछ कमी रही । पर अगले साल, १९०५-०६ में, फिर भी ४४ करोड़ का माल कम अया। अर्थात् सम-व्यापार की बात तो दूर रही, घेचारे हिन्दुस्तान के कभी पंतीस चैार कभी चचालीस करोड़ रुपये का माल उलटा कम मिला ! १९०५-०६ में दिया उसने १ अरव ६८ करोड़ का माल ; पाया सिर्फ ? अध २४ करौड़ का !!!-हिन्दुस्तान ने भेजा अधिक, पर पाया कम माल । इस से शायद कोई यह न समझे कि इंगलैंड अादि देशों के उसका जितना माल अधिक गया उसके बदले उन देशों ने उसे सोना, चाँदी रुपया और ‘जवाहिरति भेजे होंगे। संभव है. भेजे हों, परन्तु सोने, चाँदी आदि का हिसान भी ऊपर दिये गये आयात माल के लेवे में शामिल है । इस से अधिक एक कौड़ी भी हिन्दुस्तान को नहीं मिली। अच्छा तो १९०५-०६ में यह ४४ करोड़ का अधिक माल गया कहाँ ? छार कहा जा चुका है कि हिन्दुस्तान को हर साल काई २० करोड़ पया हम छाजेश के नाम से इंग्लेंड को देना पड़ता है। यह इतना रुपया गवर्नमेंट जहाज़ में लाद कर इंगलैंड नहीं भेजती । यहां के व्यापारियों से वह कहती है कि हम तुमके यहाँ २० करोड़ रुपया देते हैं । बुम हमारी तरफ से यह रुपया इंगलैंड में सेक्रेटरी आव् स्टेट के दे दो। व्यापारी भी