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सम्पत्ति-शास्त्र ।

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खुली-वहां कपड़ा बुनने के कई कारवाने जारी हुए । इस से मिलायत के फारयानेदार जुलाहे मत्सर की अग से और भी जल उठे। उन्होंने समझा कि कहीं हिन्दुस्तानी अपने ही देश का बना हुआ कपड़ा ने व्यवहार करने लगे। ऐसा होने से उनके रोजगार के मारे जाने का डर था । इसका भी उन्होंने शीघ्र ही इलाज किया । उन्हनै पारलियामेंट में इस बात पर जोर दिलाया कि विलायत माल पर, उस समय तक जो कर लगता था च और भी कम किया जाय । उनका मनोरथ सफल हुआ, और यहां तक सफल हुआ कि दो चार चीज़ों को छोड़ कर हिन्दुस्तान को भेजे जाने वाले सभी तरह के चिलायतों माल पर का कर एक दम ही उड़ा दिया गया। यह घटना ६८८३ में हुई। | इस प्रकार हिन्दुस्तान का व्यापार अच्छी तरह नष्ट हो गया । चिलायती फारानेदारों की वन आई । उनके माल ने हिन्दुस्तान भर गया । गाँध गांव में चिलायती कपड़ा देख्न पड़ने लगा । पुस देश के कलाकौशल प्रार फपड़े आदि के कारोबार का नाश करने के लिए इ गलैंड के पापायां ने जा | उपाय किये उनका यह दिग्दर्शन मात्र है। परन्तु इस विषय के कुछ अधिक विस्तार से लिने जाने की ज़रूरत है।

अट्टारहवीं शताब्दी में जा माल जल या थल को राहू से एक जगह से दूसरी जगह जाता था उन पर इस देश में महसूल लगता था । परन्तु ईस्ट इंडिया कम्पनी को शाही फरमान मिल गया कि इसके माल पर किसी तरह का भरपुल न लगाया जाय ! १७५७ ईसवी में, पलासी की लड़ाई के वाद, अँगरेज़ों की प्रभुता बंगाल में बढ़ गई । इससे जे अँगरेज़ ईस्टइंडिया कम्पनी के नौकर थे में भी अपना माल बिछा महसूल दिये ही ले जाने लगे। ये लोग खुद भी व्यापार करते थे: केम्पनो के व्यापार से उनका च्यापार हुदा था इससे मुरादाबाद के नवाच नाजिम को बड़ी हानि होने लगी । बा देबी घही कम्पनी वहादुर' धन बैठा और माल पर महसूल देने से इनकार करने लगा 1 सब का माल चिनी महसूल दिये ही एक जगह से दूसरी जगह ज्ञाने लगा ! पर बेचारे हिन्दुस्तानी व्यापारिये के माल पर पूर्ववत् हो महसूल लगता गया । परिणाम यह हुआ कि यहां के व्यापारियों को भारी हानि होने लगी। वे बेचारे व्यर्थ ही पीछे जाने लगे। उधर अंगरेज़ व्यापारी मालामाल ६ने लगे । प्रायः सारा व्यापार