पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/३२८

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गवर्नमेंट की व्यापार-व्यवसाय विषयक नीति । ३०९ हिन्दुस्तानी माल को अपने देश में आनई रोक दिया। प्रसिद्ध इतिहासलैक मिल में अपने भारतवर्षीय इतिहास में इन धान के धड़ी ही ओजस्विनी भापा में लिखा है। कम्पनी के मुलाज़िम तो व्यापार करने से रोक दिये गये, पर बँगाल, विहार और उड़ीसा को दीवानों की सनद पाकर भी कम्पनी ने व्यापार करना चन्द नहीं किया । कम्पनी का व्यापार १८३३ ईसघी तक बराबर जारी रहा । साथ ही चिलायत के अन्यान्य च्यापारियों को भी हिन्दुस्तान में व्यापार करने की आज्ञा मिल गई । कम्पनी के डाइरें की जो भाल जितना दरकार होता था उसकी एक फेहरिस्त बनाकर कलकत्ते भेजी जाती थी । कलकत्ते के अफ़सर कमनी की भिन्न भिन्न कोठियों की लिख देते थे । कि इतना माल कम्पनी को चाहिए । केटी घाले अँगरेज़, जुलाहों के पकड़ फर उन पर पहरा चिटा देते थे और जब तक मैं इस बात की न क़बूल कर लेते थे कि हुम कम्पनी के सिवा और किसी को माल न घेचेंगे तब तक घे हिलने न पाते थे। यदि माल देने में देरी होती थी तैा चे पकड़े जाते थे और कत्रहरी में उन पर मुक़द्दमा चलाया जाता था । वक्त पर माल न पहुंचने पर कम्पनी को चपरासी दस्तक लेकर जुलाई के घर पहुँचता था और बेचारे जुलाह के एक अनिा रोज़ उसे देना पड़ता था। एक एक अँगरेजी कौठी के अधीन हज़ार हज़ारडेढ़ डेढ़ हज़ार जुलाहे रहते थे । उनका ज्ञानसाल इन्हीं केाठी वाले अँगरेजों के हाथ में था । सारांश यह कि जुलाहों पर बेहद अत्याचार होता था। १८३३ ईसवी में विलायती पार्लियामेंट ने कम्पनी के व्यापार करने से सैफ दिया । उसने कहा, कम्पनी को शासक होकर व्यापार न करना चाहिए। इससे उसे हिन्दुस्तानी व्यापार से हाथ खींचना पड़ा । अँगरेज़व्यापारियों की बन आई । चे प्रतिवन्ध-रहित होकर हिन्दुस्तान में व्यापार करने लगे । हिन्दुस्तान से विदेश जाने वाले माल की रक्लन दिनों दिन घटती गई ! अरुल, मसलन, रंगीन और सादा सुती कपड़ा, चटाइयां, रेशम और रेशमी कपड़ा, ऊन और ऊनी कपड़ा, शकर, कई तरह के अफ़ आदि जो यहां से विलायत जाते थे, महसूल की अधिकता के कारण बहुत ही कम जाने लगे । रुई और रेशम के कपड़े की रफ्तनी बहुत ही