पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/३४२

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वन्धनराईत और चन्धनविहित व्यापार । ३२३ नियम के अनुसार उनका त्याग आप उचित समझते हैं। भई विदेश न भेजकर अाप यहीं कपड़े तैयार कीजिए और देखिए कि स्वदेशी कपड़े विदेशी फपी से सस्ते पड़ते हैं या महँगे । यदि महँगे पड़े तेर यहीं कपड़ा धनाने से क्या लाभ ? । जो देश कृषि-प्रधान है बह र्याद और काई व्यवसाय न करके सिर्फ अनाज ही पैदा करेगा ते। कुछ समय में इस देश को जमीन ज़रूर ही निःसत्त्व हो जायगी । उसको पैदावार कम हो जायगी। पर, इससे संरक्षण की आवश्यकता नहीं प्रतीत होती। जमीन की उर्वरा शक्ति कम हो जाने पर विना अधिक खर्च के यथै अनाज न पैदा होंगर । जब खेत की पैदावार से लगान आदि सब र्च न निकलेगा तव लोग लाचार होकर आपही त्रेती करना बन्द कर देंगे । चे खेती के व्यवसाय से अपनी पूँजो निकाल कर किसी और धन्धे में लगावेंगे। जो नया व्यवसाय वै की उससे तैयार होनेवाली चीजें जब स्वदेश छी में मिलने लगेगी तव विदेश से उनका आमदनी अपि ही बन्द हो जायगो ! अतएव व्यर्थ व्यापार प्रतिवन्ध करने की ज़रूरत नहीं। वन्धनरहित व्यापार ही स्वाभाविक व्यापार है। जो घात स्वाभाविक होती है उसी से लाभ भी होता है । अस्वाभाविक से हमेशा हानि ही की संभाबना रहती है। इस दशा में वन्धन-विहित व्यापार कदापि लाभकारी नहीं हो सकता। वह व्यापार के मुख्य उद्दलों के सर्वथा प्रतिकुल है। इससे उस का याग ही उचित है। घन्धनचिद्दित और वन्धनरहित व्यापार से सम्बन्ध रखनेवाली सर्व साधारण बर का यहां तक विचार हुआ । देने पक्षों की बात के विचार और विवेचन का यहां तक दिग्दर्शन किया गया । उनसे चन्धनरहित व्यापार ही की श्रेष्ठता साबित हुई । इसमें कोई सन्देह नहीं कि ऊपर ही ऊपर विचार करने से वन्धनविहित व्यापार की अपेक्षा वन्धनरहित व्यापार ही अच्छा मालूम होता है। परन्तु सूक्ष्म चिचार करने से बन्धनरहित व्यापार के सिद्धान्तों में थोड़ी सी बाधा आती है। वन्धनरहित व्यापार सब समय में सर्वं देश के लिए उपकारी नहीं हो सकती। इंगलैंड से बढ़ कर व्यापारव्यवसाय करनेवाला देश पृथ्वी की पीठ पर और कोई नहीं । फिर उसने हिन्दुस्तान के सम्बन्ध में वन्धन-विहित यापार के नियमों का क्यों अनुसरण किया ? यदि इस प्रकार के व्यापार से कोई लाभ नहीं हो सकता हैं। क्यों