पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/३७८

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पाँचवाँ भाग । देशान्तर-गमन । म नु ष्य को अनेक प्रकार की व्यवहारोपयोगी चीजें दरकार AMA होती हैं। जे देश जितना ही अधिक सभ्य और शिक्षित म हैं उसके लिए उतनी ही अधिक चीजें भी चाहिए । जो जितनी अधिक अच्छी दशा में है. ज़रूरतें भी उसको | उतनी ही अधिक हैं । जिसकी अवस्था यो स्थिति समाज में जितनी ऊँची है, खर्च भी उसका उतना ही अधिक है। अधिक खर्च करने के लिए आमदनी भी अधिक चाहिए । मनुष्य-संख्या की वृद्धि के । साथ साथ यदि आमदनी भी अधिक न होती गई है। यहारोपये चीजें पूर्ववत् नहीं प्राप्त हो सकतीं, और, अभाव की पूर्ति में होने से मनुष्य की सैकड़ी तरह की तकलीफें उठानी पड़ती हैं । कल्पना कीजिए कि किसी कुटुम्ब में एक पुरुष और एक स्त्री, ऐसे सिर्फ दी मनुष्य हैं। समाज की वर्तमान अवस्था में प्रायः यही देखा जाता है कि पुरुष की अपनी स्त्री का भी पालन करना पड़ता है। उसकी सारी आवश्यकतायें दूर करनी पड़ती हैं । अब इस दम्पती से यदि देश छड़ और दो लड़कियां पैदा हों ते कुटुम्ब का सबै बहुत बढ़ जायगा । बच्चों को खिलाने पिलाने और उनके लिए कपड़े-ल का प्रबन्ध करने के लिवा, उनकी शिक्षा के लिए भी माँ-बाप के बहुत ख़र्च करना पड़ेगा । यदि इस’ कुटुम्ब की आमदनी बढ़ न जायगी, अथवा यदि इसकी जनसंख्या कम न है। छायगी, तो इसके कष्टों का ठिकाना न रहेगा । मान लीजिए कि इस कुटुम्ब के अधिकार में सिर्फ ५ बीघे पैत्रिक अमीन है। इससे स्त्री-पुरुष दो आदमियों का गुज़ारा ता किसी प्रकार हो भी सकता है; पर दो लड़के और दै। लड़कियां मिल कर छः अदिमिये का गुज़ारा किसी तरह नहीं हैं। सकता । फल यह है किं पेट भर खाना न मिलने से इस क्लब के आदमियों की शारीरिक अस्था