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प्रारम्भिक पाते।

बुद्धि है-यदि उसमें यथेष्ट सज्ञानता है तो वह उससे भी अधिक सम्पत्ति जसर प्राप्त कर सकेगा।

सम्पत्ति की उत्पत्ति के साधन जमीन, मेहनत और पूँजी है। इन साधनों की उत्पादक शक्ति की सीमा है । जहां तक उस सीमा का उल्लंघन नहीं हुआ तहां तक तो उनकी सहायता से अधिक सम्पत्ति ज़रूरही उत्पन्न होती है । पर उस हद तक पहुँच जाने पर सम्पत्ति को वृद्धि रुक जाती है। और सम्पत्ति की वृद्धि का रुक जाना प्रादमी के लिए अच्छा नहीं । आवादी बढ़ रही है, सभ्यता फैल रही है, शिक्षा की उन्नति हो रही है, दिनों दिन व्यावहारिक चीज़ों की माँग अधिकाधिक हो रही है । इस दशा में सम्पत्ति की वृद्धि रुक जाने से काम नहीं चल सकता। इससे बुद्धिमान् आदमी उसे बढ़ाने की फिर भी फ़िक्र करते हैं 1 सम्पत्ति की उत्पत्ति के जो तीन साधन हैं उन्ही की उन्नति से यह बात हो सकती है । सम्पत्ति उत्पन्न करने का पहला साधन ज़मीन है । कल्पना कीलिए कि आपके पास दस बीघे जमीन है । उससे जितनी अधिक सम्पत्ति उत्पन्न हो सकती है आप उत्पन्न करते हैं । और अधिक उत्पन्न करने की उसमें शक्ति नहीं । पर चाहिए आपको अधिक । क्योंकि जीवन-सम्बन्धी जरूरतों के बढ़ जाने से बिना अधिक सम्पत्ति के आपका काम नहीं चल सकता । इस कठिनता को दूर करने का एकमात्र यही उपाय है कि दस बीघे की जगह आप बारह या पन्द्रहवीये में खेती करें । अर्थात् जमीन का रकबा बढ़ादें। जितनी ज़मान आप जानते हैं उससे अधिक सोतें। ऐसा करने से ज़रूरही आपको आम- दनी बढ़ जायगी।

सम्पति उत्पन्न करने का दूसरा साधन महनत है। १० बीघे जमीन जोतने बोने में आप जितने मजदूर लगाते हैं उनकी यथेष्ट टन्नति हो चुकी है। चे खूब विश्वासपात्र हैं, महनती भी हैं, मिताचारी भी हैं, शिक्षित भी हैं। अतएव जितनी महनत घे करते हैं उससे अधिक उनसे होना सम्भव नहीं। तब आपको क्या करना चाहिए? आप मजदूरों की संख्या बढ़ा दीजिए । जैसे आपने दस बीघे जमीन को बढ़ाकर १२ या १५ बीघे कर दिया है, वैसे ही मजदूर भी बढ़ा दीजिए । ऐसा करने से ज़रूर ही मेहनत अधिक होगी। और मेहनत अधिक होने से सम्पत्ति भी जरूर ही अधिक उत्पन होगी।