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पूँजी को वृद्धि ।

करते हैं। कभी कभी ऐसा होता है कि किसी काम में अधिक लाभ देख कर उसे और लोग भी करने लगते हैं। इससे लाभ बहुत कम हो जाता है और धीरे धीरे यहां तक नौवत पहुँचती है कि उसे छोड़ना पड़ता है । इस उतार चढ़ाव का फल यह होता है कि कभी पूँजी बढ़ जाती है और कभी कम हो जाती है।

पूँजी की वृद्धि कई कारणों से हो सकती है। समाज के सुधार से, शिक्षा की वृद्धि से, घर-गृहस्थी का अच्छा प्रवन्ध रखने से, फिजूलखर्चा की आदत कम हो जाने से, व्याज की दर बढ़ जाने से और व्यावहारिक चीजें सस्ती मिलने से सञ्चय अधिक होता है । अतएव पूँजी बढ़ जाती है। इनके सिवा पूँजी की वृद्धि के और भी अनेक कारण हो सकते हैं । उनमें से सम्भूय समुत्थान मुख्य है।

मिल कर बहुत आदमियों के द्वारा जो व्यापार या व्यवसाय किया जाता है उसका नाम सम्भूय-समुत्थान है। जितनी बड़ी बड़ी कम्पनियां हैं सब इसी सम्भूय-समुत्थान का फल है । जब बहुत भादमी अपनी अपनी आमदनी का थोड़ा थोड़ा हिस्सा किसी काम में लगा कर लाभ उठाना चाहते हैं तब उन्हें कम्पनी खड़ी करनी पड़ती है। क्योंकि यदि धै अलग अलग अपना अपना काम करना चाहें तो पूँजी कम होने के कारण पहले तो उसे करही न सकें और यदि कोई छोटा मोटा काम करें भी तो उससे लाभ बहुत कम हो । घही यदि सब आदमी थोड़ी थोड़ी पूँजी एक जगह एकत्र करते हैं तो बहुत बड़ी रकम हो जाती है। उससे घे बड़े बड़े व्यापार कर सकते हैं। मार व्यापार जितनाही बड़ा होगा लाभ भी उतनाहीं अधिक होने की सम्भावना होगी । कल्पना कीजिए कि आपके पास १०० रुपये की पूँजी है और आप किसी स्कूल में अध्यापक हैं। अब आप अपना अध्यापन काम छोड़ कर इतनी थोड़ी पूजी से कोई स्वतंत्र व्यवसाय नहीं कर सकते । पर यही १०० रुपये लगा कर यदि आप किसी कम्पनी का एक हिस्सा खरीदलें तो आपका रुपया भी स्वार्थ लग जाय और उससे आपको लाभ भी हो-अर्थात् प्रापकी पूंजी की वृद्धि होती रहे । सम्भूय समुत्थान के द्वारा, संचित की हुई छोटी छोटी रकम, जो स्वतंत्र रोति से किसी घ्यापार या व्यवसाय में नहीं लगाई जा सकती, मिल कर बड़ी भारी पूँजी बन जाती हैं। इससे सम्पत्ति की वृद्धि होने में बड़ी सहायता मिलती है। परन्तु एक