सम्पत्ति का प्रधान लक्षण विनिमय-साध्य होना है। जिस चीज़ का बदला हो सकता है वही सम्पत्ति है। इस लक्षणा के अनु- स सार मिट्टी. पत्थर, लकड़ी, कोयला, हड्डी आदि की भी गिनती सम्पत्ति में हो सकती है। चिनिमयसाध्यता का गुण प्रातही पदार्थो को सम्पत्ति का रूप प्राप्त हो जाता है। इसका वर्णन हो चुका है। सम्पत्ति की उत्पत्ति और वृद्धि की भी विवेचना हो चुकी है। अच, इस भाग में, उसके विनिमय का विचार करना है।
सम्पत्ति का विनिमय इस लिए किया जाता है जिसमें जिन चीज़ों की हमें ज़रूरत न हो उनके बदले हम ज़रूरत की चीज़ प्राप्त कर सकें । क्योंकि संसार में रह कर व्यवहार की सारी चीजें खुदही बना लेना या पैदा करना एक आदमी के लिए साध्य नहीं। इससे जो चीज़ आदमी खुदही निर्माण नहीं कर सकता वे उसे पारों से प्राप्त करनी पड़ती है। पर जिसकी चीज़ है यह मुफ्त में उसे औरों को नहीं देता। उसके बदले कुछ देना पड़ता है। इसी अदला-बदल का नाम व्यापार है । यह बड़े महत्त्व का विषय है । अस्त- एव व्यापार और उसके सहकारी विषयों का वर्णन हम इस पुस्तक के उत्त- रार्द्ध में, अलग अलग परिच्छेदों में, करेंगे। इस भाग में विनिमय-सम्बन्धी सिर्फ खास ख़ास बातों का वर्णन करेंगे।
बिना पदार्थों का विनिमय किये-बिना उनका बदला किये-आदमी
का एक बड़ी भर भी काम नहीं चल सकता । पर बदले के लिए उपेक्षित
चीजों का मित क्या कोई सहज काम है ! कल्पना कीजिए, किसी बढ़ई ने
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