पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/८५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
६६
सम्पत्ति-शास्त्र।


एक इल तैयार किया। उसके बदले में उसे अनाज चाहिए। पर अनाज पैदा करनेवाले किसान को उस समय हल दरकार नहीं । या यदि दरकार भी है तो उसके बदले में देने को काफ़ी अनाज उसके पास नहीं है । इस दशा में वेचार वढ़ई को कोई पेसा किसान हूँदना पड़ेगा जिसे हल भी दरकार हो और उसके बदले में देने के लिए उसके पास काफ़ी अनाज भी हो । यदि ऐसा किसान बढ़ई को न मिले तो बेचारे को भूखों मरना पड़ेगा। फिर, सिर्फ अनाजही से बढ़ई का काम नहीं चल सकता । उसे नमक, मिर्च, मसाला, तेल आदि भी चाहिए। यदि उसे हल के बदले अनाज मिल भी गया तो उस अनाज को लेकर उसे नमक, मिर्च, मसाला आदि देकर अनाज लेनेवालों को हूंढना पड़ेगा । इसी तरह अन्यान्य व्यवसाय करनेवालों को भी संग होना पड़ेगा। क्योंकि चीज़ बदलने की ज़रूरत सबको होती है, और सब चीजें सब आदमी अपने घर में नहीं नैयार कर सकते । सबको अपनी चीजें लेनेवालों का पता लगा कर उनसे अपनी अपेक्षित चीजें बदलने का भभाट भाड़ा न समझिए। यदि ये दोनों काम लोगों को करने पड़ें तो बहुत समय अर्थ जाय, और तकलीफ़ जो उठानी पड़े वह धाते में रहे । इन्हीं कठि- नाइयों को दूर करने के लिए एक विशेष प्रकार का व्यवसाय करनेवालों की स्टष्टि हुई है। उनका नाम है ध्यापारी, वणिक, सौदागर या साजिर ये लोग अपनी दुकान में बेचने के लिए बदले की चीजें रखते हैं। व्यावहारिक चीज़ों का विनिमय करनाहीं व्यापार है।

विनिमय के असल रूप में वाग्गिल्य का होना असम्भव या आश्चर्य की बात नहीं । असभ्य देशों में यह प्रथा अव तक जारी है। अफरीका और आस्ट्रेलिया आदि के असभ्य जंगली हाथीदाँत, गोंद, मोम, शुतुरमुर्ग के पर आदि देकर उनके बदले में हथियार, औज़ार और खाने पीने आदि को चीज़े अब भी लेते हैं । देहात में यहां भी बढ़ई, लुहार, कुम्हार आदि की बनाई हुई चीजों का बदला अनाज देकर अब तक किया जाता है। परन्तु अन्यत्र इस अदला-बदल की सहायक एक वस्तु ऐसी निश्चित हो गई है जिससे विनिमय की कठिनाइयाँ दूर हो गई हैं। इस वस्तु के प्रचार से अब बढ़ाई को हल लेकर अनाज पैदा करनेवाले किसान के पास नहीं जाना पड़ता । बढ़ई अपने हल के बदले वही निश्चित चीज़ लेलेता है और उसे अपनी अपेक्षित चीज़ का व्यापारकरनेवाले व्यापारी को देकर उसके बदले जो