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सम्पत्ति-शास्त्र।

अतपत्र मजदूरी देनी होगी। यही मजदूरी उस हवा की कीमत्त हेगी। अर्थात् अनायास ही प्राप्त होने योग्य हवा के बदले तो कोई चीज़ न मिलेगी, पर परिश्रम करके यदि अधिक हवा पहुँचाई जायगी तो उसके बदले मजदूरी मिलेगी ! मतलब यह कि परिश्रम करके यदि अधिक परिमाग में कोई हवा देगा तो उसका बदला गव्य से हो जायगा, अन्यथा नहीं। इसका कारण यह है कि जितनी हवा पंखे से मिलती है उतनी मचुर परिमाण में नहीं पाई जाती।

आदमियों की आवश्यकता पूरा करने का गुण जिस चीज़ में जितना ही अधिक होता है बह चीज़ उतनी ही अधिक कीमती भी होती है। हम देखने हैं कि किसी चीज़ को माँग बहुत होती है, किसी की कम । आवश्यकताओं को पूरा करने को कमी-बेशी ही इसका कारण है । अर्थात् जो चीज़ जितनी अधिक उपयोगी है- जो चीज़ आवश्यकताओं को पूरा करने की जितनी अधिक शक्ति रखती है उसकी मांग भी उतनी ही अधिक होती है। जिन चीज़ों को जरूरन लोगों को अधिक होती हैं उन्हीं का बदला ये अधिक देते है। और जिनकी ज़रूरत नहीं होती उनका पहले तो बे बदला देते ही नहीं और यदि देन भी हैं ने बहुत कम देते हैं । ऐसी चीजों का खप कम होता है।

देहात में जितने तालाब है. मुम्न जाने पर, उनसे जो चाहे मिट्टी ले जाय। प्रायः उसकी कुछ भी कीमत नहीं देनी पड़ती है क्योंकि वहाँ उसको कुछ भी कदर नहीं । परन्तु चदी मिट्टी यदि आसपास के गारों से गाड़ियों में भरकर कोई कानपुर ले जाता है तो वहाँ वह विक लाती है। उसकी कीमत आती है । देहात में ऐसी मिट्टो की दर इस लिए नहीं है, क्योंकि वहाँ वह प्रचुर परिमाण में पाई जाती है । उसे दूर से नहीं लाना पड़ता। पर जो लोग शहर में रहते हैं उन्हें प्रचुर परिमाण में पड़ी हुई मिट्टी नहीं मिलती। उसे यदि चे प्राप्त करना चाहै ता दूर जाना पड़े और वहां से गाड़ियों में लाना पड़े। ऐसा करने से उन्हें गाड़ियों का किराया और मजदूरों को मजदुरी देनी पड़े। इसीसे यदि चाहर से मिट्टी कानपुर आती है तो लोग उसकी कदर करते हैं और खुशी से लोमत देकर मोल लेते हैं। जिस मिट्टी की देहात में कुछ भी कीमत नहीं आती वही शहर में कीमती हो जाती है। अतएव एक ही चीज़ कहीं कीमती समझी जाती है, कहीं नहीं समझी जाती । जो आदमी मिट्टो बेचता है यह उसे कीमती समझ कर ही गाड़ी में