पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 1.pdf/१७

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प्रस्तावना

महीनेभरमें गांधीजीके जीवनका अन्त हुए दस साल पूरे हो जायेंगे। उम्रके पक जानेपर भी उनमें भरपूर जीवन-शक्ति थी और काम करनेकी उनकी शक्ति अपार थी। अचानक एक हत्यारेके हाथों उनका अन्त हो गया। भारत हतप्रभ और दुनिया दुःखी हो गई और हम लोगोंके लिए, जिनका उनसे ज्यादा निकट सम्बन्ध था, उस धक्के और उस दुःखको सहना कठिन हो गया। फिर भी, ऐसे शानदार जीवनका शायद यही एक योग्य अन्त था; उन्होंने मरकर भी मानो उसी कामको पूरा किया, जिसमें वे अपने जीवन-काल-भर लगे हुए थे। उम्रके साथ-साथ शरीर और मनसे उनका धीरे-धीरे ढलना हममें से किसीको अच्छा न लगता। इस तरह वे आशा और सफलताके एक दमकते हुए सितारेकी भाँति उस राष्ट्रके पिताके रूपमें जिये और मरे जिसे उन्होंने आधी सदीतक गढ़ा था और सिखाया था।

जिन लोगोंको उनके बहुत-से कामोंमें से कुछमें उनके साथ रहनेका सौभाग्य रहा है, उनके लिए वे सदा नौजवानोंकी-सी शक्तिके प्रतीक बने रहेंगे। हमें उनकी याद किसी बूढ़े आदमीके रूपमें नहीं बल्कि एक ऐसे व्यक्तिके रूपमें आयेगी जो वसन्तकी संजीवनी शक्ति लेकर नये भारतके जन्मका प्रतिनिधि बना। उस नई पीढ़ीके लिए, जिसका उनसे निजी लगाव नहीं हो पाया, वे एक गाथा बन गये हैं, और उनके नाम और कामके साथ न जाने कितनी कहानियाँ जुड़ गई हैं। जीवन-कालमें तो वे बड़े थे ही, मरनेपर और भी बड़े हो गये हैं।

मुझे खुशी है कि भारत सरकार उनके लेखों और भाषणोंका पूरा संग्रह प्रकाशित कर रही है। यह निहायत जरूरी है कि उन्होंने जो-कुछ लिखा और कहा है, उसका एक पूरा और प्रामाणिक संग्रह तैयार किया जाये। उनके काम अनेक थे, और उन्होंने लिखा भी बहुत है। इसलिए ऐसा संग्रह तैयार करना अपने आपमें ही बहुत बड़ा काम है। और इसे पूरा करनेमें कई साल लग सकते हैं। लेकिन इसे करना हमारा कर्त्तव्य है — खुद अपने प्रति और आगे आनेवाली पीढ़ियोंके प्रति।

ऐसे संग्रहमें महत्त्वकी और बिना महत्त्वकी या आकस्मिक चीजोंका मिल-जुल जाना अनिवार्य है। फिर भी, कभी-कभी आकस्मिक शब्द ही आदमीके विचारोंपर ज्यादा रोशनी डालते हैं, बनिस्बत बहुत सोचे-विचारे हुए लेख या कथनके। कुछ ही चुनने और छाँटनेवाले हम कौन होते हैं? हम उनकी सारी बातें सामने रख दें। उनके लिए जिन्दगी एक समूची चीज थी एक बहुरंगी झीने बुने हुए वस्त्रकी भाँति। किसी बच्चेसे दो शब्द बोल लेना, किसी पीड़ितको हलकेसे सहला देना उनके लिए उतनी ही बड़ी बात थी, जितनी कि ब्रिटिश साम्राज्यको चुनौती देनेका कोई प्रस्ताव।