पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 1.pdf/१९

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सामान्य भूमिका

भारत सरकारने सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय प्रकाशनका यह आयोजन राष्ट्र-स्वातन्त्र्यशिल्पीके प्रति राष्ट्रका ऋण चुकानेकी भावना-मात्रसे नहीं बल्कि इस दृढ़ विशवाससे किया है कि भावी पीढ़ियोंके लिए महात्माजीके तमाम भाषणों, लेखों और पत्रोंको एक स्थानपर एकत्र करके छाप रखना जरूरी है।

इस ग्रंथमालाका मंशा गांधीजीने दिन-प्रतिदिन और वर्ष-प्रतिवर्ष जो-कुछ कहा और लिखा, उस सबको एकत्र करना है। उनके सेवाव्रतका विस्तार आधी शताब्दी तक रहा और उसने हमारे देशके अलावा दूसरे अनेक देशोंको भी प्रभावित किया। जीवन-समस्याओंकी जितनी विविधतापर उन्होंने ध्यान दिया उससे अधिकपर बहुत कम महापुरुषोंने दिया है। जिन लोगोंने उनको सशरीर इस पृथ्वीपर विचरण करते हुए, प्रत्येक क्षण अपने विश्वासोको कार्यरूप देते हुए देखा है, उनका कर्त्तव्य है कि वे आनेवाली पीढ़ियोंको उनकी शिक्षाओंकी समृद्ध विरासत शुद्ध और, जहाँतक हो सके, पूर्ण रूपमें सौंप जायें — उनपर उन पीढ़ियोंका यह ऋण है, जिन्हें महात्माजीकी उपस्थिति और उदाहरणसे शिक्षा लेनेका मौका नहीं मिल सकता।

गांधीजीके लेख, भाषण और पत्र लगभग ६० वर्षके अत्यन्त कर्मठ सार्वजनिक जीवन — १८८८ से १९४८ तकके हैं। वे दुनियाके विभिन्न भागों, खास तौरसे तीन देशों —भारत, इंग्लैंड और दक्षिण आफ्रिकामें बिखरे हुए हैं।

लेख और भाषण केवल उन थोड़ी-सी पुस्तकोंमें ही नहीं हैं जो उन्होंने लिखी हैं, या जो उनके जीवन-कालमें प्रकाशित हुई थीं। वे धूल खाती हुई फाइलों, सरकारी कागज-पत्रों तथा रिपोर्टों (ब्ल्यू बुक्स) और पुराने अंग्रेजी, गुजराती तथा हिन्दी समाचारपत्रोंके ढेरोंमें भी हैं। उनके पत्र बड़े और छोटे, धनी और गरीब, सब जातियों और धर्मोके असंख्य व्यक्तियोंके पास सारी दुनिया में फैले हुए हैं। ऐसी सारी सामग्रीको नष्ट हो जाने या खो जानेके पहले ही एकत्र कर लेना जरूरी है।

निस्सन्देह, उनके लेखों और भाषणोंके अनेक संग्रह या, अधिक ठीक कहा जाये तो, संकलन मौजूद हैं। उनका प्रकाशन विशेष उल्लेखनीय रूपमें नवजीवन प्रकाशन मंदिर, अहमदाबादने स्वयं गांधीजीके स्थापित किये हुए न्यासके अन्तर्गत किया है। ये प्रकाशन बहुमूल्य तो हैं, परन्तु इनमें से अधिकतर गांधीजीके भारतीय कार्यकाल और मुख्यतः उनके 'नवजीवन' तथा 'यंग इंडिया' और 'हरिजन' जैसे साप्ताहिकोंमें प्रकाशित सामग्रीतक ही सीमित हैं। इसके अतिरिक्त, वे अधिकतर, विषयवार संकलित किये गये हैं। फलतः कभी-कभी उनमें लेखों या भाषणोंके इष्ट विषय-सम्बन्धी अंशमात्र दे दिये गये हैं और अन्य अंशोंको छोड़ दिया गया है।

जहाँतक पत्रोंका सम्बन्ध है, गांधी स्मारक निधिने जितने उसे मिल सके उतने एकत्र करके और उनके फोटो निकलवाकर बहुत बड़ी सेवा की है। परन्तु उन्हें अबतक प्रकाशित नहीं किया गया। उसके एकत्र किये हुए पत्रोंकी संख्या हजारोंतक