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४६. पत्र : दादाभाई नौरोजीको

मारफत दादा अब्दुल्ला ऐंड कम्पनी

डर्बन

१४ जुलाई, १८९४

सेवामें

माननीय श्री दादाभाई नौरोजी, संसद-सदस्य

श्रीमन्,

अपने इसी माहकी ७ ता० के पत्रके[१] सिलसिले में मैं आपको मताधिकार कानून संशोधन विधेयक विरोधी आन्दोलनकी प्रगतिको निम्नलिखित जानकारी दे रहा हूँ :

सात तारीख को विधानपरिषदमें विधेयकका तीसरा वाचन मंजूर हो गया।परिषदको दिया गया दूसरा प्रार्थनापत्र स्वीकार कर लिया गया था। एक माननीय सदस्यने प्रस्ताव किया था कि जबतक सदन प्रार्थनापत्र पर विचार न कर ले तबतक तीसरा वाचन स्थगित रखा जाये। वह प्रस्ताव नामंजूर कर दिया गया।

गवर्नरने विधेयकको अपनी अनुमति दे दी है। शर्त यह है कि सम्राज्ञी उसका निषेध न कर दें। विधेयकमें एक व्यवस्था है कि वह तबतक कानूनका रूप न लेगा जबतक कि गवर्नर राजकीय घोषणा द्वारा या अन्यथा सूचित न कर दें कि सम्राज्ञीकी इच्छा विधेयकका निषेध करनेकी नहीं है।

मैं इसके साथ ब्रिटिश सरकारके नाम एक प्रार्थनापत्रकी[२] नकल भेज रहा हूँ। प्रार्थनापत्र यहाँके गवर्नरको शायद १७ ता० को भेजा जायेगा। इसपर लगभग १०,००० भारतीय हस्ताक्षर करेंगे। लगभग ५,००० हस्ताक्षर हो चुके हैं।

अफसोस है कि मैं आपको परिषदके नाम भेजे गये प्रार्थनापत्रकी[३] नकल नहीं भेज पा रहा हूँ। परन्तु एक अखबारकी कतरन भेज रहा हूँ। उसमें प्रार्थनापत्रकी काफी अच्छी रिपोर्ट दी गई है।

और कुछ कहनेको है, ऐसा नहीं लगता। परिस्थिति इतनी नाजुक है कि अगर विधेयक कानून बन गया तो अबसे दस वर्ष बाद उपनिवेशमें भारतीयोंकी स्थिति असह्य हो जायेगी।

आपका आज्ञाकारी सेवक,

मो० क० गांधी

अंग्रेजी (एस० एन० २२५१) की फोटो-नकलसे ।

  1. १. उपलब्ध नहीं।
  2. २.देखिए पिछला शीर्षक।
  3. ३.देखिए “प्रार्थनापत्र : नेटाल विधान परिषदको", ६-७-१८९४।