पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 1.pdf/२४०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१९४
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


किसी आदमीको अधपेटकी मजदूरीपर यहाँ लाना, उसे गुलामीमे जकड़ कर रखना, और जब वह स्वतन्त्रताका जरा-सा भी चिह्न दिखाये, या कम दुःखदर्दकी हालत में रहने के योग्य हो, तब उसे उसके घर वापस भेज देनेकी इच्छा करना — जब कि वहाँ जाकर वह अपेक्षाकृत एक अजनबी होगा और शायद अपनी जीविका भी कमा न सकेगा — ब्रिटिश राष्ट्रके स्वाभाविक न्याय या निष्पक्ष व्यवहारका सूचक नहीं है।

भारतीयोंके प्रति किया जानेवाला व्यवहार ईसाइयतके प्रतिकूल है, यह साबित करनेके लिए तर्ककी आवश्यकता नहीं है। जिस विभूतिने हमें अपने शत्रुओंसे प्रेम करनेकी, और जिसे हमारे कोटकी जरूरत हो उसे अपना चोगा दे देनेकी, और जब बायें गालपर तमाचा मारा जाये, तब दाहिना गाल सामने कर देनेकी शिक्षा दी, और जिसने यहूदी और गैर-यहूदी के भेदको उखाड़ फेंका, वह ऐसी वृत्तिको कभी बरदाश्त नहीं करेगा, जो आदमीको इतना अहंकारी बनाती है कि वह अपने सह-जीवीके स्पर्शसे भी अपने-आपको नापाक हुआ माने।

आखिरी प्रश्नकी चर्चा, मैं मानता हूँ, पहले प्रश्नकी चर्चा में काफी हो गई है। और अगर प्रत्येक भारतीयको उपनिवेश से खदेड़ देनेका प्रयोग किया जाये तो व्यक्तिगत रूपसे मुझे बहुत दुःख न होगा। वैसा करनेपर मुझे जरा भी सन्देह नहीं है कि उपनिवेशी लोग शीघ्र ही उस दिनपर मातम मनाने लगेंगे, जब कि उन्होंने यह कदम उठाया होगा। और वे सोचने लगेंगे कि वैसा न किया होता तो अच्छा होता। उन्हें खदेड़ देनेपर छोटे-छोटे धंधे और जिन्दगीके छोटे-छोटे काम पड़े रहेंगे। जिस कामके लिए वे खास तौरसे उपयुक्त हैं, उसे यूरोपीय नहीं करेंगे। और आज भारतीयों से उपनिवेशको राजस्वके रूपमें जो भारी रकमें प्राप्त होती हैं, वे समाप्त हो जायेंगी। दक्षिण आफ्रिकाकी आबहवा ऐसी नहीं है, कि उसमें यूरोपीय लोग वे सब काम कर सकें जो यूरोपमें वे सरलतासे कर लेते हैं। तथापि, मैं तो अत्यन्त आदरके साथ यह निवेदन करना चाहता हूँ कि अगर भारतीयोंका उपनिवेशमें रखा जाना लाजिमी ही है, तो फिर उनके साथ ऐसा व्यवहार कीजिए जिसके, अपनी योग्यता और ईमानदारीके आधारपर, वे लायक हों। अर्थात् वे जिसके अधिकारी हों वह उन्हें दीजिए; आपकी निष्पक्ष और भेद-भावरहित न्यायबुद्धि जो कमसे-कम देनेकी प्रेरणा करे वह उन्हें दीजिए।

अब मुझे आपसे सिर्फ यह प्रार्थना करनी है कि आप इस विषयपर सच्चे दिलसे विचार करें। और मुझे आपको (यहाँ मेरा मतलब सिर्फ अंग्रेजोंसे है) याद दिलाना है कि विधिने अंग्रेजों और भारतीयोंको एक-साथ रखा है, और भारतीयोंका भाग्य-सूत्र अंग्रेजोंके हाथमें सौंपा है। प्रत्येक अंग्रेज भारतीयोंके साथ जैसा बरताव करेगा उसपर ही निर्भर करेगा कि इस एक-साथ रखे जानेका परिणाम उदार सहानुभूति, प्रेम, मुक्त पारस्परिक व्यवहार और भारतीय स्वभावके सही ज्ञानसे उत्पन्न चिरन्तन ऐक्य होना है, या इस एक-साथ रखे जानेको सिर्फ उतने ही समय टिकना