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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अगर ट्रेपिस्ट लोगोंको कोई कसौटी माना जा सके तो, उलटे, वे स्वस्थ और प्रसन्न हैं। हम जहाँ भी गये, प्रफुल्ल मुसकान और विनम्र नमस्कारसे हमारा अभिनन्दन हुआ — भले ही हम किसी भाईसे मिले हों या बहनसे। मार्गदर्शक भी जब हमें उस जीवन-प्रणालीका वर्णन सुनाता था, जिसकी वह इतनी कद्र करता था, तब उस स्वयंवृत्त अनुशासनको दुःसह मानता हुआ दिखलाई नहीं पड़ता था। अमर श्रद्धा और पूर्ण, बेशर्त आज्ञापालनका इससे ज्यादा अच्छा उदाहरण अन्यत्र ढूँढ़े नहीं मिल सकता।

अगर उनका भोजन यथासम्भव सादेसे-सादा है तो उनकी भोजनकी मेजें और उनके शयनके कमरे भी कम सादे नहीं हैं।

मेजें आश्रममें ही बनी हुई हैं और उनमें कोई वार्निश नहीं है। मेजपोशोंका उपयोग नहीं किया जाता। डर्बनके बाजारमें उपलब्ध सस्तीसे-सस्ती छुरियाँ और चम्मच हैं। काँचके बर्तनोंके स्थानपर वे तामचीनीके बर्तन काममें लाते हैं।

शयन के लिए एक लंबा-चौड़ा कमरा है (परन्तु वह आश्रमवासियोंकी संख्या की दृष्टिसे बड़ा नहीं है)। उसमें ८० बिस्तर हैं। सारी उपलब्ध जगहका बिस्तरों के लिए उपयोग किया जाता है।

देशी लोगोंके सोनेके हिस्सेमें, बहुत अधिक संख्यामें बिस्तर लगाये गये जान पड़ते थे। जैसे ही हम उनके सोनेके कमरेमें घुसे, हमने वहाँ बन्द और दम घोंटनेवाली हवा महसूस की। तमाम बिस्तर एक-दूसरे से सटे हुए थे। उन्हें पृथक् करनेके लिए सिर्फ एक-एक तख्ता लगा था। चलनेके लिए भी जगह मुश्किलसे थी।

वे रंग-भेदमें विश्वास नहीं करते। देशी लोगोंके साथ वैसा ही बरताव किया जाता है, जैसा कि गोरोंके साथ। देशी लोग अधिकतर बच्चे हैं। उन्हें वही भोजन दिया जाता है, जो कि 'भाइयों' को मिलता है। कपड़े भी उतने ही अच्छे होते हैं। आम तौर पर यद्यपि कहा जाता है कि काफिरोंको ईसाई बनाना व्यर्थ हुआ है, और इसमें कुछ सत्य न हो सो बात भी नहीं है, परन्तु यह तो हर व्यक्ति बड़े से बड़ा अविश्वासी भी मानता है कि ट्रैपिस्ट लोगोंकी मिशन, सचमुच, अच्छे देशी ईसाई बनाने में अत्यन्त सफल सिद्ध हुई है। जब दूसरे पंथोंके मिशन स्कूल देशी लोगोंको पश्चिमी सभ्यताके तमाम भयानक दुर्गुण ग्रहण कर लेनेका अवसर देते हैं और उनपर नैतिक असर कभी-कभी ही डाल पाते हैं, तब ट्रैपिस्ट मिशन के देशी सदस्य सादगी, सद्गुण और शिष्टताके नमूने हैं। उन्हें राहगीरोंको नम्रतापूर्वक फिर भी गौरवपूर्ण ढंगसे, अभिवादन करते देखना एक आनन्दकी बात थी।

मिशन में लगभग १,२०० देशी लोग हैं। इनमें बच्चे और वयस्क सब शामिल हैं। उन सबने आलस्य, अकर्मण्यता और अंधविश्वासका जीवन छोड़कर उद्यम, उपयोगिता और एक परमात्मा की भक्तिका जीवन ग्रहण कर लिया है।

आश्रम में लोहारी, टीनसाजी, बढ़ईगीरी, जूते बनाने, चमड़ा पकाने, आदिके तरह-तरह के काम-घर या कारखाने हैं। उनमें देशी लोगोंको ये सब उपयोगी उद्योग सिखाये जाते हैं। इनके अलावा अंग्रेजी और जूलू भाषाएँ भी पढ़ाई जाती हैं। यहाँ