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अन्नाहारी मिशनरियोंकी टोली

दोनों ही कड़े मौन व्रत और ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं। मठाधीश जिन लोगोंको इजाजत देता है उनके सिवा कोई दूसरे भाई या बहन बोल नहीं सकते। मठाधीश नेटालके ट्रैपिस्ट लोगोंका प्रमुख है। बोलनेकी इजाजत सिर्फ उन लोगोंको दी जाती है, जिन्हें खरीदी करने या देखने आनेवालोंकी व्यवस्था करनेके लिए शहर जाना पड़ता है।

भाई लोग लम्बा चोगा पहनते हैं। छाती और पीठपर एक काला कपड़ा होता है। बहनें सादेसे-सादे लाल कपड़े पहनती हैं। कोई भी मोजे पहनता दिखलाई नहीं पड़ा।

भ्रातृमण्डल में शामिल होनेके उम्मीदवारोंको पहले दो वर्षका व्रत लेना पड़ता है। इस बीच उन्हें नौसिखिया माना जाता है। दो वर्षके बाद या तो उन्हें आश्रम छोड़ देना पड़ता है या जीवन-भरके लिए व्रत ले लेना पड़ता है। आदर्श ट्रैपिस्ट २ बजे रातको उठता है और चार घंटे प्रार्थना तथा ध्यानमें लगाता है। ६ बजे सुबह वह नाश्ता करता है, जिसमें डबलरोटी और काफी या इसी तरहका कुछ सादा भोजन होता है। बारह बजे दिनको वह डबलरोटी तथा शोरबा और फलोंका भोजन करता है। ६ बजे शामको ब्यालू करता है और ७ या ८ बजे सोने चला जाता है। ये भाई लोग जानवरोंका मांस, मछली या पक्षियोंका मांस कुछ नहीं खाते; अंडे खानातक छोड़ देते हैं। दूध लेते हैं, परन्तु उन्होंने बताया कि नेटालमें दूध सस्ता नहीं मिलता। बहनोंको हफ्ते में चार दिन मांस खानेकी अनुमति है। यह पूछनेपर कि इस तरहका फर्क क्यों पाला जाता है, उपकारशील मार्गदर्शकने कहा : "क्योंकि बहनें भाइयोंसे ज्यादा सुकुमार होती हैं।" इस तर्कका बल मेरी समझ में नहीं आया। मेरा साथी करीब-करीब अन्नाहारी है, परन्तु उसकी समझमें भी नहीं आया। यह समाचार हमारे लिए आश्चर्यजनक था। इससे हमें बहुत दुःख भी हुआ, क्योंकि हमने तो अपेक्षा की थी कि भाई और बहन दोनों ही अन्नाहारी होंगे।

वे डाक्टरकी सलाहके अलावा शराब नहीं पीते। खानगी उपयोगके लिए कोई अपने पास पैसा नहीं रखता। सब एक-समान धनी या एक समान गरीब हैं।

हमें यद्यपि उस स्थानका कोना-कोना देखनेको मिला परन्तु हमने कहीं भी कपड़े रखनेकी आलमारियाँ या सन्दूकें नहीं देखीं। आश्रमवासियोंको जबतक कामके लिए बाहर जानेकी इजाजत नहीं दी जाती, वे आश्रमकी सीमाके बाहर नहीं जाते। समाचारपत्र और गैर-धार्मिक पुस्तकें वे नहीं पढ़ते। जिन धार्मिक पुस्तकोंको पढ़नेकी अनुमति होती है उन्हें छोड़कर वे अन्य धार्मिक पुस्तकें भी नहीं पढ़ सकते। जिस पाईप लिये हुए व्यक्ति से हम पहले-पहल मिले थे उससे हमने पूछा था कि क्या आप ट्रैपिस्ट हैं? उसने इस कठोर, तपोमय जीवनके कारण ही उत्तर दिया था : "डरो मत, मैं कोई भी होऊँ, मगर ट्रैपिस्ट नहीं हूँ।" और फिर भी वे भले भाई-बहन यह मानते नहीं दीख पड़े कि उनका जीवन दुस्सह परिस्थितियोंमें पड़ गया है।

एक प्रोटेस्टेंट धर्मगुरुने अपने श्रोताओंसे कहा था कि रोमन कैथोलिक लोग दुर्बल, रोगी और दुःखी हैं। परन्तु, कैथॉलिक लोग कैसे हैं, यह निश्चय करनेके लिए