(९) उपर्युक्त उद्धरण, गिरमिट-मुक्त भारतीयोंको उपनिवेशमें बसनेसे रोकनेवाले कानूनके लिए बताये गये कारणोंके अंश हैं। परन्तु, प्रार्थियोंका अत्यन्त आदरके साथ निवेदन है कि इनसे बिलकुल उलटी ही बात सिद्ध होती है। क्योंकि, आपके अधिकतर प्रार्थी जिन भारतीय व्यापारियोंमें से हैं, वे "किसी प्रकारके इकरारनामेके अधीन उपनिवेशमें नहीं आते।" यदि उनके मामलेमें हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता, तो गिरमिटिया भारतीयोंके मामलेमें तो और भी नहीं किया जा सकता। कारण यह है कि वे भी समान रूप में ब्रिटिश प्रजा हैं और यों कहना चाहिए कि उन्हें इस उपनिवेशमें निमन्त्रण देकर बुलाया गया है। इसके अलावा उनका वास (आयुक्तोंके अपने ही शब्दों में) "उपनिवेशके लिए बहुत लाभप्रद हुआ है।" इसलिए उपनिवेशियोंकी शुभेच्छा और उनके द्वारा हिफाजतके वे विशेष अधिकारी हैं।
(१०) और, अगर 'कुली' लोग "किसी बड़ी हदतक यूरोपीयोंके प्रतिद्वन्द्वी नहीं हैं" तो फिर, प्रार्थी नम्रतापूर्वक पूछना चाहते हैं कि ऐसे कानूनके बनाने में औचित्य क्या है, जिससे गिरमिटिया भारतीयोंका शान्तिपूर्वक और ईमानदारी से अपनी रोटी कमाना कठिन हो जाये? गिरमिटिया भारतीयोंमें कोई ऐसे खास दोष हैं, जो उन्हें समाजके खतरनाक सदस्य बना देते हैं और, इसलिए ऐसे कानून बनाना उचित है, सो बात तो निश्चय ही सही नहीं है। भारतीय राष्ट्रका शान्तिप्रिय स्वभाव और उसकी सौम्यता लोक प्रसिद्ध है। अपने अधिकारियोंके प्रति आज्ञाकारिता भी उसके चरित्रको कम प्रमुख विशेषता नहीं है। आयुक्त इसके विरुद्ध बात नहीं कह सकेंगे, क्योंकि प्रवासी संरक्षकने, जो आयुक्तोंमें से ही एक था, अपनी रिपोर्टमें उसी पुस्तकके पृष्ठ १५ पर कहा है :