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दक्षिण आफ्रिकी भारतीय समस्याको
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

गांधीजी सन् १८९३ में दक्षिण आफ्रिका पहुँचे। उस समय वहाँ चार उपनिवेश थे — नेटाल, केप प्रदेश, ट्रान्सवाल और ऑरेंज फ्री स्टेट। इन उपनिवेशों में उन यूरोपीयोंके वंशजोंका राज्य था, जिन्होंने कथा-कहानियोंमें वर्णित भारतकी खोज में भटकते हुए शुद्ध संयोगसे दक्षिण आफ्रिकाका पता पा लिया था। वे वहाँ बस गये थे। पहले-पहल तो उन्होंने पूर्व और पश्चिमके बीचोंबीच एक सुविधाजनक पड़ावके तौरपर और बादमें अपने स्थायी निवासस्थानके रूपमें उसका विकास किया था।

सन् १८९३ में वहाँ जिन गोरे लोगोंका प्रभुत्व था वे डच या बोअर और अंग्रेज थे। ट्रान्सवाल तथा ऑरेंज फ्री स्टेटमें डचोंका और नेटाल तथा केप प्रदेशमें अंग्रेजोंका आधिपत्य था। अंग्रेजोंके रंगभूमिपर आने और १८०६ में केप प्रदेश तथा १८४३ में नेटालपर अपना कब्जा जमा लेनेके पहले डच लोग लगभग दो सौ वर्षोंसे उस देशमें प्रायः निर्विघ्न राज्य करते आ रहे थे। इन प्रदेशोंके हाथसे निकल जानेपर वे अन्दरकी ओर खिसक गये और उन्होंने ट्रान्सवाल तथा ऑरेंज फ्री स्टेटपर कब्जा कर लिया। इस सबके बावजूद, ब्रिटिश लोग डच उपनिवेशोंमें और डच लोग ब्रिटिश उपनिवेशोंमें भी बने रहे।

इन दोनों समुदायोंके बीच लगातार संघर्ष होता रहता था। दोनों ही देशपर अपना-अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहते थे। आखिर वह संघर्ष बोअर युद्ध (१८९९-१९०२) में परिणत हुआ, जिसके फलस्वरूप साराका-सारा दक्षिण आफ्रिका ब्रिटिश साम्राज्यका अंग बन गया। ब्रिटिशोंका कहना था कि युद्ध करनेमें उनका मुख्य उद्देश्य डच क्षेत्रोंमें बसे हुए ब्रिटिश और भारतीय प्रजाजनोंको उनके समुचित अधिकार प्राप्त कराना था।

जब गांधीजी दक्षिण आफ्रिका पहुँचे, उस समय चारों उपनिवेश एक-दूसरे से स्वतन्त्र थे। वे अपनी-अपनी स्वतन्त्र नीतिके अनुसार अपना कामकाज चलाते थे। उस समय लंदन स्थित ब्रिटिश सरकार अपने प्रजाजनोंके हितोंकी रक्षाके लिए इन उपनिवेशोंमें अपने प्रतिनिधि रखती थी और कुछ हदतक इन सरकारोंकी नीतियोंका नियन्त्रण भी किया करती थी। परन्तु सन् १९१० में इन सब उपनिवेशोंने मिलकर ब्रिटिश झण्डेकी छत्रछाया में दक्षिण आफिकी संयुक्त राज्यकी स्थापना करके पूर्ण स्वायत्त-शासन प्राप्त कर लिया। इस समयसे ब्रिटिश सरकार भी इन उपनिवेशों और इनकी संयुक्त-सरकारके प्रति निर्हस्तक्षेपी नीतिका अनुसरण करने लगी। उसका कहना था कि दक्षिण आफ्रिका अब एक अधिराज्य (डोमिनियन) बन गया है इसलिए वह ब्रिटिश राष्ट्रमण्डलका एक स्वशासित सदस्य है, जिसे अपना कामकाज अपनी इच्छाके अनुसार चलानेकी स्वतन्त्रता है। अब ब्रिटिश साम्राज्य के एशियाई प्रजाजनोंकी शिकायतोंपर