पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 1.pdf/३२९

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२९० सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय दुहराया गया है। पहला आश्वासन असन्दिग्ध रूपसे यह जान लेनेपर दिया गया था कि भारतीयोंके साथ बिना किसी खतरेके बराबरीका बरताव किया जा सकता है, वे अत्यन्त वफादार और कानूनका पालन करनेवाले है। और मारतपर ब्रिटेनका कब्जा स्थायी तौरपर इन्ही शोपर कायम रखा जा सकता है, दूसरी शर्तों पर नही। उपर्युक्त आश्वासनमें गम्भीर व्यतिक्रम भी हुए है। मगर मेरा निवेदन है कि इससे उस आश्वासनके अस्तित्वको ठोस सचाईसे इनकार नहीं किया जा सकता। मेरा खयाल है कि वे व्यतिक्रम नियमको सिद्ध करनेवाले अपवाद है, उसका अतिक्रमण करनेवाले नहीं। क्योकि मेरे पास अगर समय और स्थान होता, और अगर मुझे पाठकोको उबा देनेका डर न होता, तो मै ऐसे असंख्य उदाहरण दे सकता, जिनमें १८५८की घोषणाका अचूक रूपसे पालन किया गया है, और आज मी भारतमें तथा अन्यत्र किया जा रहा है। और यह अवसर तो निश्चय ही उसकी अवहेलना करनेका नहीं है। इसलिए मैं निवेदन करता हूँ कि भारतीयोंका जातीय आधारपर अयोग्य ठहराये जानेका विरोध करना और उस विरोधके माने जानेको अपेक्षा. करना पूर्णतः उचित है। इतना कहनेके बाद मै अपने भाइयोंकी ओरसे आश्वासन देता है कि मतदाता-सूचीको आपत्तिजनक लोगोंसे मुक्त रखनेके लिए या भविष्यमें भारतीयोंक मत-बलको सबसे प्रबल न होने देनेके लिए अगर कोई कानून बनाये जायेंगे तो मेरे देशवासी उनका विरोध करनेका विचार नहीं करेगे। मेरा दृढ़ विश्वास है कि जिनसे मतका मूल्य समझनेकी सम्भवतः आशा ही न की जा सकती हो, ऐसे भारतीयोको मतदाता-सूचीमें स्थान दिलानेकी भारतीयोंकी कोई इच्छा नहीं है। उनका कहना है कि सभी भारतीय अनजान नही है। फिर ऐसे लोग कम-ज्यादा सभी समाजोमें पाये जाते है। प्रत्येक सही विचारवाले भारतीयका लक्ष्य, जहाँतक हो सके, यूरोपीय उपनिवेशियोंकी इच्छाओंके अनुकूल रहना है। वे यूरोपीय और ब्रिटिश उपनिवेशियोसे लड़कर पूरी रोटी लेनेके बजाय शान्तिसे रहकर आधी ही ले लेना पसन्द करेंगे। इस अपीलका उद्देश्य कानून बनानेवालों और यूरोपीय उपनिवेशियोसे यह प्रार्थना करना है कि अगर कोई कानून बनाना जरूरी ही हो तो वे सिर्फ ऐसा कानून बनायें या सिर्फ ऐसे कानूनका समर्थन करे, जो उससे प्रभावित होनेवाले लोगोको मंजूर हो। स्थितिको अधिक साफ करनेके लिए मै एक सरकारी रिपोर्टके कुछ अंशोंको उद्धृत करके यह बतानेकी स्वतन्त्रता लंगा कि इस प्रश्नपर सबसे प्रमुख उपनिवेशियोंके विचार क्या है। पिछली विधानसभाके सदस्य श्री सांडर्स केवल इस हदतक गये: यह परिभाषा ही कि ये हस्ताक्षर पूरे हों, निर्वाचकके अपने ही अक्षरोंमें हो और यूरोपीय लिपिमें हों, इस जबरदस्त खतरेको रोकने में बहुत हद तक सहायक होगी कि एशियाइयोंके मत अंग्रेजोंके मतोंको दवा बॅगे। (अफेयर्स ऑफ नेटाल, सी. ३७९६ - १८८३) उसी पुस्तकके पृष्ठ ७ पर भूतपूर्व प्रवासी-संरक्षक कप्तान ग्रेन्जका यह कथन दिया गया है: