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भारतीयोंका मताधिकार

बहुत ही कम धनी लोग हैं और शायद उनमें कोई भी कानून बनानेवालेका काम करने योग्य नहीं है — इसलिए नहीं कि राजनीतिको समझनेकी योग्यता रखनेवाला कोई नहीं है, बल्कि इसलिए कि कानून बनानेवालोंमें अंग्रेजी भाषाके जैसे ज्ञानकी अपेक्षा की जाती है, वैसा ज्ञान किसीको नहीं है। दूसरे कथनके द्वारा उपनिवेशके हिन्दुओंको मुसलमानोंसे भिड़ा देनेका प्रयत्न किया गया है। यह बहुत आश्चर्यजनक है; उपनिवेशका कोई भी जिम्मेदार व्यक्ति इस तरहके संकटकी कामना कर ही कैसे सकता है। ऐसे प्रयत्नोंका परिणाम भारतमें अत्यन्त दुःखद हुआ है और उनसे ब्रिटिश शासनके स्थायित्व' तकको खतरा पहुँचा है। इस उपनिवेशमें, जहाँ दोनों सम्प्रदाय बहुत ही मैत्रीभावसे रहते हैं, मेरी समझमें तो ऐसा प्रयत्न करना बहुत बड़ी शरारतसे भरा है।

अब जो यह स्वीकार किया जाता है कि सब भारतीयोंपर मताधिकार पानेके सम्बन्धमें प्रतिबन्ध लगा देना एक बहुत बड़ा अन्याय है, सो एक शुभ लक्षण है। कुछ लोगोंका खयाल है कि तथाकथित अरबोंको मताधिकार देना चाहिए। कुछका खयाल है कि उनमेंसे चुने हुए लोगोंको देना चाहिए। और कुछ सोचते हैं कि गिरमिटिया भारतीयोंको कभी भी मताधिकार नहीं मिलना चाहिए। ताजेसे-ताजा सुझाव स्टैंगरका है और वह बड़ा ही हास्यास्पद है। अगर उस सुझावका अनुसरण किया जाये तो सिर्फ वे लोग नेटालमें मताधिकार प्राप्त कर सकेंगे, जो यह साबित कर सकें कि वे भारतमें मतदाता थे। ऐसा नियम बेचारे भारतीयोंके ही लिए क्यों? अगर यह सबपर लागू हो तो मैं नहीं समझता कि भारतीयोंको इसपर कोई आपत्ति होगी। और अगर ऐसी परिस्थितियों में यूरोपीयोंको भी अपने नाम मतदाता-सूचीमें दर्ज कराना कठिन गुजरे तो मुझे कोई आश्चर्य न होगा। क्योंकि उपनिवेशमें ऐसे यूरोपीय कितने हैं, जो अपने राज्योंमें मतदाता थे? तथापि यह बयान यदि यूरोपीयोंके सम्बन्धमें दिया गया होता तो उसपर उग्रतम रोष प्रकट किया गया होता। भारतीयोंके बारेमें इसका गम्भीरताके साथ स्वागत किया गया है।

यह भी कहा गया है कि भारतीय 'एक भारतीयको एक मत' के लिए आन्दो- लन कर रहे हैं। मेरा निवेदन है कि यह कथन बिलकुल निराधार है। इसका मंशा भारतीय समाजके प्रति अनावश्यक दुर्भावना पैदा करना है। मैं मानता हूँ कि वर्तमान साम्पत्तिक योग्यता अगर हमेशा नहीं तो हालमें तो जरूर ही यूरोपीय मतोंकी संख्या अधिक बनाये रखनेके लिए काफी है। फिर भी अगर यूरोपीय उपनिवेशियोंका खयाल भिन्न हो तो, मुझे लगता है कि उचित और सच्ची शिक्षा-योग्यता और वर्तमानसे अधिक साम्पत्तिक योग्यता निर्धारित कर देनेपर कोई भारतीय आपत्ति नहीं करेगा। भारतीय जिस बातका विरोध करते हैं और करेंगे, वह है रंग-भेद — जातीय भेदके आधारपर अयोग्य ठहराया जाना। सम्राज्ञीकी भारतीय प्रजाको अत्यन्त गम्भीरताके साथ बारंबार आश्वासन दिया गया है कि उनकी राष्ट्रीयता और धर्मके कारण उनपर कोई अयोग्यताएँ अथवा प्रतिबन्ध नहीं मढ़े जायेंगे। और यह आश्वासन किन्हीं भावनात्मक आधारोंपर नहीं, बल्कि योग्यताके प्रमाण मिलनेपर दिया और

 

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