पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 1.pdf/३६८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३१८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


जमीन खरीदने और, यहाँतक कि किसी जमीन-जायदादपर काबिज होनेसे भी रोकनेवाली हैं। भारतीयोंने, जो ऐसी बातोंमें हमेशा आगे रहते हैं, ऐसे नियमोंके जारी किये जानेपर तत्परताके साथ गवर्नरको विरोधका पत्र भेजा है। जुलूलैंड अबतक सम्राज्ञीके शासनाधीन है। इसलिए, उसपर सम्राज्ञीके अधिकारियोंकी नजर ज्यादा सीधी है। इन बातोंको देखते हुए हम ठीक तरहसे समझ नहीं सकते कि वहाँ ऐसे नियमोंका अमल कैसे कराया जा सकता है। हम देखते ही हैं कि नेटालमें जो मताधिकार कानून संशोधन विधेयक पास किया गया है, उसे रोकने के लिए सम्राज्ञी-सरकारका रुख कितना दृढ़ है। भारतीयोंने जो विरोधपत्र भेजा है उससे मालूम होता है कि उनमें से कुछकी जमीन-जायदाद वहाँ पहलेसे ही मौजूद है। और अगर ऐसा है तो, हम समझते हैं, दूसरे तमाम कारणोंको छोड़ वेनेपर भी, प्राथियोंका मामला विचारके योग्य है। जो जुलू-देश भारतीयोंको अपने यहाँ जमीन-जायदादकी मिल्कियत रखनेसे रोकता है, उसमें जमीनपर काबिज होनेके कुछ खास कानून हो सकते हैं । परन्तु फिर भी यह हकीकत तो बनी ही है कि वह प्रदेश सम्राज्ञीके शासनाधीन है। ऐसी स्थितिमें यह बात अजीब मालूम होती है कि जो नियम उत्तरदायी शासन वाले उपनिवेश नेटालमें नहीं बनाये जा सकते, वे वहाँ बनाये जा सकें।

दक्षिण आफ्रिका विभिन्न भागों में प्रकाशित होनेवाले नियमों और कानूनोंमें रंग-भेद नित्यप्रति ही दाखिल होता रहता है। यह बात इतनी अधिक होने लगी है कि भारतीयोंके लिए अपने अधिकारोंपर प्रहार करनेवाले तमाम कानूनोंसे परिचित रहना और उन्हें सम्राज्ञी सरकारकी दृष्टिमें लाना असम्भव है। फिर, भारतीय तो मुख्यतः व्यापारी और कारीगर हैं। वे सिर्फ अपने व्यापारके योग्य ही ज्ञान रखते हैं। और बहुतों को तो उतना भी नहीं है।

और स्थिति यहाँतक पहुँच गई है कि प्रार्थी स्थानिक अधिकारियोंसे ऐसा अन्याय भी दूर करा सकनेकी आशा नहीं रखते, जो प्रस्तुत मामलेके समान ब्रिटिश संविधानके मूलभूत सिद्धान्तोंके अज्ञानसे हो गया हो।

प्राथियोंको भय है कि यदि एक सम्राज्ञी-शासनाधीन उपनिवेश सम्राज्ञीकी प्रजाके एक अंशको जमीन-जायदाद के अधिकार देनेसे इनकार कर सकता है तो दक्षिण आफ्रिकी गणराज्य और ऑरेंज फ्री स्टेटकी सरकारोंका भी वैसा ही करना या उससे आगे बढ़ जाना बहुत हदतक उचित ठहरेगा।

प्रार्थियोंका निवेदन है कि एशोवेके नियमोंमें रंग-भेदका अस्तित्व है, इस आधार पर नोंदवेनीमें भी उसी तरह के नियम बनाना उचित नहीं होना चाहिए। अगर एशोवेके नियम बुरे हैं तो यह उचित होगा कि दोनोंमें ही ऐसा परिवर्तन या संशोधन कर दिया जाये, जिससे कि ब्रिटिश भारतीय प्रजाके न्यायपूर्ण अधिकारोंपर प्रहार न हो।

प्रार्थी आपका ध्यान एक और वस्तुस्थितिकी ओर भी आकर्षित करनेकी इजाजत लेते हैं। सम्राज्ञीकी भारतीय प्रजाके अधिकारोंपर प्रहार करनेवाले कानूनोंसे न केवल दक्षिण आफ्रिकावासी भारतीय भारी परेशानीमें पड़ते हैं, बल्कि ऐसे कानूनोंको बदलानेके