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पत्र : 'नेटाल विटनेस' को

लिए उन्हें बार-बार जो प्रार्थनापत्र देने पड़ते हैं, उनमें बहुत खर्च भी होता है। भारतीय समाज अति-समृद्ध तो है ही नहीं, इसलिए उसे यह खर्च बरदाश्त करना बहुत कठिन गुजरता है। फिर, लगातार अशान्ति और क्षोभकी हालतसे सारे भारतीय समाजके व्यापारमें जो बाधा पड़ती है, सो अलग है।

प्रार्थियोंका निवेदन है कि दक्षिण आफ्रिकावासी भारतीयोंकी स्थिति और हैसियतकी जाँच कराना आवश्यक है। साथ ही, दक्षिण आफ्रिकी अधिकारियोंको यह आदेश देना भी आवश्यक है कि वे सम्राज्ञीकी भारतीय प्रजाके प्रति अन्य सब ब्रिटिश प्रजाओंकी बराबरीका व्यवहार सुनिश्चित करें। हमारे नम्र मतसे, इससे कमतर कोई भी कार्रवाई वफादार और कानूनका पालन करनेवाली भारतीय प्रजाको सामाजिक तथा नागरिक विनाशसे बचा नहीं सकेगी।

इसलिए प्रार्थी नम्रतापूर्वक विनती करते हैं कि सम्राज्ञी सरकार एशोवे और नोंदवेनी बस्तियोंके नियमोंमें परिवर्तन या संशोधन करनेका आदेश दे, जिससे सम्राज्ञीकी भारतीय प्रजाके मार्ग में उन नियमोंके वर्तमान स्वरूपसे आनेवाली बाधाएँ मिट जायें। हमारा यह नम्र सुझाव भी है कि भविष्य में भारतीयोंके अधिकारोंपर प्रहार करनेवाले वर्ग-संबद्ध कानून न बनानेका आदेश दिया जाये।

और न्याय तथा दयाके इस कार्यके लिए प्रार्थी, कर्त्तव्य समझकर, सदैव दुआ करेंगे, आदि।

अब्दुल करीम हाजी आदम

और अन्य

अंग्रेजी (एस° एन° ३६२०) की फोटो-नकलसे।

 

८९. पत्र : 'नेटाल विटनेस' को

डर्बन
४ अप्रैल, १८९६

सेवामें
सम्पादक
'नेटाल विटनेस'

महोदय,

'जी° डब्ल्यू° डब्ल्यू°' ने गत ११ मार्चको आपको पत्र लिखा था। उसमें उन्होंने भारतीयोंके मताधिकारके सम्बन्धमें मेरी पुस्तिका[१] की आलोचना करके मुझे सम्मानित किया है। उसके उत्तरमें आप मेरा निम्नलिखित वक्तव्य प्रकाशित कर दें तो मैं आभारी होऊँगा।

 

२. देखिए "भारतीयोंका मताधिकार", १६-१२-१८९५

  1. मंचरजी एम° भावनगरी द्वारा पूछे गये एक प्रश्नके उत्तर में चेम्बरखेनने कॉमन्स सभामें १० अप्रैलको वचन दिया था कि प्रार्थनापत्र मिलनेपर उसपर गौर किया जायेगा। सम्राटको सरकारने अन्ततोगत्वा यह प्रतिबन्ध हटा दिया था।