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पत्र : 'नेटाल विटनेस' को


अधिक विस्तृत बना दिया जाये, भारतके गैर-सरकारी व्यक्तियों और भारतीय जनताको शासन के कार्यमें भाग लेनेका अधिक अवसर दिया जाये और इस प्रकार, जब १८५८ में ब्रिटिश महारानीने भारतका शासन अपने हाथोंमें लिया तबसे भारतीय समाजके ऊँचे वर्गीमें राजनीतिक उद्योग तथा राजनीतिक क्षमता दोनोंका जो उल्लेखनीय विकास दिखाई दिया है, उसे सरकारी मान्यता दी जाये। यह विधेयक १८६१ के भारतीय विधान परिषद कानून में संशोधन करनेके लिए पेश किया गया है। भारतमें बहुत लम्बे समय से कानून बनानेके किसी-न-किसी प्रकारके अधिकारोंका अस्तित्व रहा है। परन्तु उनका स्वरूप कुछ उलझा हुआ था और वे कभी वैध और कभी अवैध माने जाते थे। वे भूतपूर्व ईस्ट इंडिया कम्पनीके शासन के साथ ट्यूडर और स्टुअर्ट राजाओंके अधिकारपत्रोंके कालसे शुरू हुए थे। परन्तु भारतकी वर्तमान विधानमण्डल-प्रणालीका आरम्भ उस समय हुआ था, जब लार्ड कैनिंग वाइसराय थे, और सर सी° वुड, जिन्हें बादमें लार्डकी पदवी दे दी गई थी, भारतमन्त्री थे। सर सी° वुडने १८६१ का भारतीय विधान परिषद कानून पास कराया था। . . . १८६१ के कानूनसे भारत में वाइसरायको सर्वोच्च परिषद और बम्बई तथा मद्रासकी प्रान्तीय परिषदें — इस तरह तीन विधान परिषदोंका निर्माण हुआ था। वाइसरायकी सर्वोच्च परिषद में केवल गवर्नर-जनरल और उनकी कार्य-परिषद तथा कमसे-कम छः और अधिक से अधिक बारह अतिरिक्त सदस्य होते हैं। इन अतिरिक्त सदस्योंकी नामजदगी वाइसराय करता है और इनमें से कमसे कम आधे सदस्योंका गैर-सरकारी व्यक्ति होना आवश्यक है। ये गैर-सरकारी व्यक्ति यूरोपीय या भारतीय कोई भी हो सकते हैं। मद्रास और बम्बईको विधान परिषदोंमें भी कमसे कम चार और ज्यादासे ज्यादा आठ अतिरिक्त सदस्य होते हैं। उनकी नामजदगी प्रादेशिक गवर्नर करते हैं और उनमें भी आधे सदस्योंका गैर-सरकारी व्यक्ति होना जरूरी है। उस कानूनके पास होनेके बादसे बंगाल और पश्चिमोत्तर प्रदेशमें भी विधानपरिषदें बन चुकी हैं। बंगालकी परिषद में लेफ्टिनेंट गवर्नर तथा बारह नामजद सदस्य और पश्चिमोत्तर प्रदेशकी परिषद में लेफ्टिनेंट गवर्नर तथा ९ नामजद सदस्य होते हैं। प्रत्येकके नामजद सदस्योंमें एक तिहाईका गैर-सरकारी होना जरूरी है। . . . लोकसेवाको भावनावाले अनेक प्रतिभाशाली और समर्थ भारतीय सज्जनोंको सरकारको अपनी सेवाएँ प्रदान करनेके लिए आगे बढ़ने को राजी कर लिया गया है। और इन विधान परिषदोंका योग्यतामान निस्सन्देह ऊँचा रहा है।

संशोधन-कानून विधान परिषदोंको बजटपर बहस करने और प्रश्न पूछनेका अधिकार प्रदान करता है (यह अधिकार परिषदोंको अबतक नहीं था)। परिषदोंके सदस्योंकी संख्या बढ़ाने और एक सरसरी चुनाव-पद्धति जारी करनेकी व्यवस्था भी उसमें की गई है। बेशक, यह कानून सिर्फ अनुज्ञात्मक है।

 

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