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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सरदार या ऊपर कहे अनुसार अधिकृत अन्य बड़े-बड़े जमींदार, तथा व्यापारियोंके संघ आदि और बम्बई विश्वविद्यालयकी सेनेट — ये सब इन आठ सदस्योंका चुनाव या सिफारिश करते हैं। निर्णय बहुमतसे किया जाता है। जो संस्थाएँ कानूनी तरीके से स्थापित नहीं होतीं वे जिन नियमोंके अनुसार अपने सामने आये हुए प्रश्नोंका निर्णय करती या प्रस्तावोंको स्वीकार करती हैं उनके ही अनुसार ये चुनाव या सिफारिशें भी करती हैं।

यह सम्माननीय सदन देखेगा कि दक्षिण भारतके सरदारोंमें तो परिषदके चुनावों में सीधे मत देनेवाले लोग भी मौजूद हैं।

दूसरी विधान परिषदोंके नियम भी बहुत-कुछ ऐसे ही हैं।

इस प्रकारका स्वरूप है भारतमें विधान परिषदों और राजनीतिक मताधिकारका। इसलिए प्रार्थी सादर बताना चाहते हैं कि अन्तर रूपका नहीं, केवल अंशोंका है। कारण यह नहीं है कि भारतीय प्रतिनिधित्वके सिद्धान्तोंको समझते नहीं। इस सम्बन्धमें श्री ग्लैड्स्टनके विचारोंको ही उद्धृत कर देना सबसे अच्छा होगा। उनके कुछ विचार तो ऊपर उद्धृत किये ही गये हैं। चुनावके तत्त्वके मर्यादित स्वरूपका स्पष्टीकरण उन्होंने इन शब्दोंमें किया है :

सम्राज्ञी सरकारको समझ लेना चाहिए कि हमें तमाम आश्वासन दे दिये गये हैं कि शासनके इस शक्तिशाली यन्त्र (अर्थात्, चुनाव-तत्त्व) को अमल में लानेका प्रयत्न किया जायेगा। परन्तु यदि इन आश्वासनोंके बावजूद ऐसा कुछ भी परिणाम न हुआ, जैसे कि हम आशा करते हैं, तो यह नितान्त गम्भीर निराशाका विषय माना जायेगा। यहाँ में इस बातका विचार नहीं कर रहा हूँ कि परिणाम कितना बड़ा होगा, बल्कि इस बातका कर रहा हूँ कि वह किस कोटि का होगा। मैं समझ सकता हूँ कि हम भारत जैसे एशियाई देशमें जो कुछ करना चाहते हैं उसे करनेमें भारी कठिनाइयाँ हैं, क्योंकि उसके पास अपनी पुरानी सभ्यता है, अपनी खास संस्थाएँ हैं, विविध जातियाँ, धर्म और धन्धे हैं और इतना विशाल देश तथा इतनी अधिक जनसंख्या है जितनी कि शायद चीनको छोड़कर कभी किसी एक राज्यमें नहीं रही। परन्तु कठिनाइयाँ कितनी भी बड़ी क्यों न हों, काम महान है। उसे सफलतापूर्वक पूर्ण करनेके लिए हद दर्जेकी बुद्धिमत्ता और सावधानीकी जरूरत होगी। इन सब बातोंसे हमें आशा होती है कि भारतका भविष्य महान है और हम उत्साहपूर्वक उसकी प्रतीक्षा करते हैं। हमें यह अपेक्षा करनेका उत्साह भी होता है कि उस विशाल और लगभग अपरिमेय देशमें चुनाव-तत्त्वको — भले वह सीमित मात्रामें ही क्यों न हो — सचाई के साथ अमल में लानसे सच्ची सफलता प्राप्त होगी।

भारतीय विषयोंपर बोलनेके अधिकारी सभी व्यक्ति भारतीय विधान परिषदके प्रातिनिधिक स्वरूपके सम्बन्धमें एकमत दीखते हैं।