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प्रार्थनापत्र : नेटाल विधानसभाको

निवासियोंको तो मत देनेका अधिकार न होगा, परन्तु यूरोपीय राज्योंसे आये हुए लोग, अपने देशोंमें ऐसी संस्थाएँ न होनेपर भी, उपनिवेशके सामान्य मताधिकार कानूनके अनुसार मतदाता बन सकेंगे।

उससे, यदि पिता यूरोपीय हो तो, संदिग्ध चरित्रकी गैर-यूरोपीय स्त्रियोंके पुत्रों को तो मत देनेका अधिकार मिल जायेगा; परन्तु यदि कोई कुलीन यूरोपीय स्त्री किसी गैर-यूरोपीय जातिके कुलीन पुरुषसे विवाह कर ले तो उसका पुत्र सामान्य मताधिकार कानूनके अनुसार मतदाता नहीं बन सकेगा । विधेयक उनके आड़े आयेगा।

अगर मान लिया जाये कि भारतीय विधेयकके दायरेमें आ जाते हैं, तो फिर जिस तरीके से उन्हें मतदाता सूची में अपने नाम लिखाने होंगे, वह सदैव उनके लिए सन्तापका कारण रहेगा। हो सकता है कि उससे पक्षपातका कोई तरीका निकल पड़े और भारतीय समाजके बीच गम्भीर झगड़े पैदा कर दे।

इसके अलावा, विधेयकका मंशा भारतीय समाजको अपने अधिकार स्थापित करनेके लिए अनन्त मुकदमेबाजी में फँसा देनेका है। हम समझते हैं कि उन अधिकारोंकी व्याख्या तो उपनिवेशकी किसी अदालतका आश्रय लिये बगैर ही की जा सकती है।

इस सबसे अधिक, आज तो यूरोपीय लोग भारतीयोंका मताधिकार छीननेकी कामना करते हैं और आन्दोलन उनकी ओरसे हो रहा है। विधेयकके फलस्वरूप वह आन्दोलन भारतीयोंको करना होगा। और हमें भय है, उसे सदैव चलाते रहना पड़ेगा।

हम अत्यन्त नम्रताके साथ निवेदन करते हैं कि इस तरहकी स्थिति उपनिवेश-निवासी सभी समाजोंके हितकी दृष्टिसे अत्यन्त अवांछनीय है।

प्रार्थियोंने एक वर्षसे अधिकतक सावधानीसे जाँच की है। अब वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि भारतीयोंके मतोंके यूरोपीयोंके मतोंपर हावी हो जानेका डर बिलकुल ख्याली है। इसलिए हम उत्कटतासे प्रार्थना और आशा करते हैं कि यह सम्माननीय सदन भारतीयोंके मताधिकारको खास तौरसे रोकनेवाले या प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूपमें रंग-भेद दाखिल करनेवाले किसी विधेयकको स्वीकार करनेके पहले सच्ची स्थितिकी जाँच करा लेगा, जिससे यह पता चल जाये कि इस उपनिवेशमें सम्पत्तिके आधारपर मताधिकार प्राप्त कर सकनेवाले भारतीयोंकी संख्या कितनी है।

और न्याय तथा दयाके इस कार्यके लिए प्रार्थी, कर्त्तव्य समझकर, सदैव दुआ करेंगे, आदि।[१]

अब्दुल करीम हाजी आदम

तथा अन्य

अंग्रेजी (एस° एन° ९८०) की फोटो नकलसे।

 
  1. यह प्रार्थनापत्र प्रस्तुत किये जानेपर विधेयकका द्वितीय वाचन एक सप्ताह के लिए और स्थगित कर दिया गया था और वह ६ मईको ही पूरा हो पाया। १८ मईको विधेयक विधान मण्डलोंकी एक संयुक्त समितिको सौंप दिया गया, तब उसका तृतीय वाचन हुआ। उसके बाद, गवर्नरने विधेयकको सम्राज्ञीको अनुमतिके लिए उपनिवेश मन्त्रीको भेज दिया। देखिए अर्को फेज पृष्ठ, ६०९-१५।