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९२. पत्र : प्रधानमन्त्रीको

डर्बन
१४ मई, १८९६

सेवामें
माननीय प्रधान मन्त्री
पीटरमै रित्सबर्ग
महोदय,

बताया जाता है कि आपने मताधिकार विधेयकके दूसरे वाचनके समय नेटाल भारतीय कांग्रेसके बारेमें यह कहा है :

शायद सदस्यगण जानते न होंगे कि इस देशमें एक संघ है। वह अपने ढंगका बहुत शक्तिशाली और बहुत ऐक्यबद्ध संघ है, हालांकि वह करीब-करीब गुप्त है। मेरा मतलब भारतीय कांग्रेससे है।

क्या मैं पूछनेकी धृष्टता कर सकता हूँ कि आपके भाषणके उस अंशकी यह रिपोर्ट सही है अथवा नहीं? अगर सही है तो क्या इस विश्वासका कोई आधार है कि कांग्रेस 'करीब-करीब एक गुप्त संस्था है?' मैं आपको ध्यान इस बातकी ओर आकर्षित करनेकी इजाजत चाहता हूँ कि जब ऐसी संस्था स्थापित करनेका इरादा किया गया था, तब इसकी सूचना अखबारोंमें दे दी गई थी। जब संस्थाकी प्रत्यक्ष स्थापना हुई, उस समय 'विटनेस' ने उसका उल्लेख किया था। संस्थाकी वार्षिक कार्रवाइयाँ और सदस्योंकी सूचियाँ बराबर पत्रोंको भेजी जाती रही हैं और पत्रोंने उनपर टीका-टिप्पणी भी की है। ये कागजात मैंने कांग्रेसके अवैतनिक मन्त्रीकी हैसियतसे सरकारको भी भेजे हैं।[१]

आपका आज्ञाकारी सेवक,

मो° क° गांधी

अवैतनिक मन्त्री, नेटाल भारतीय कांग्रेस

अंग्रेजी (एस° एन° ९८१) से।

 
  1. सी° बर्डने १६ मईको पत्रका यह उत्तर दिया : "प्रधान मन्त्रीके नाम इसी महीनेकी १४ तारीखके आपके पत्रमें उनके द्वारा प्रयुक्त कुछ शब्दोंका उल्लेख किया गया था, जो उन्होंने मताधिकार विधेयकके द्वितीय वाचनके दौरान नेटाल भारतीय कांग्रेसके बारेमें कहे थे। सर जॉन रॉबिन्सनको इच्छानुसार, मैं उसके उत्तरमें आपको बतला रहा हूँ कि उन्होंने कांग्रेसको एक लगभग गुप्त संस्था अपने इस विश्वासके कारण कहा था कि कांग्रेसको बैठकोंमें आम जनता और समाचारपत्रोंको नहीं जाने दिया जाता। यदि इस मामले में प्रधान मन्त्रीकी जानकारी गलत हो तो मैं आपको बतलाता हूँ कि वह बड़ी खुशीसे उसे सही करने को तैयार हैं। (एस° एन° ९८१)