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प्रार्थनापत्र : जो° चेम्बरलेनको

इस विचारको स्वीकार करती है कि १८५८ की घोषणाके बावजूद भारतीय ब्रिटिश प्रजाजनोंके साथ यूरोपीय ब्रिटिश प्रजाजनोंसे भिन्न आधारपर व्यवहार किया जा सकता है, तो प्रार्थी निवेदन करते हैं कि गोलमोल कानून बनाकर मुकदमेबाजी और मुसीबतोंके लिए दरवाजा खोल देनेसे कहीं अच्छा यह होगा कि सम्राज्ञी सरकारकी रायमें जो अधिकार और विशेषाधिकार भारतीयोंको नहीं मिलने चाहिए उनसे उन्हें स्पष्ट उनका नाम लेकर वंचित कर दिया जाये।

अगर विधेयक मंजूर हो गया तो मानी हुई बात है कि वह अपने गोल-मोल अर्थ के कारण अनन्त मुकदमेबाजीको जन्म देगा। यह भी पहले दर्जेके महत्त्वकी बातः मानी गई है कि भारतीय मताधिकारका प्रश्न नेटालके प्रधान मन्त्रीके शब्दोंमें, 'हमेशा के लिए एक ही बारमें तय' कर दिया जाये। और फिर भी नेटाली लोकमतके अधिकतर नेताओंके मतानुसार, विधेयकसे वह प्रश्न 'हमेशा के लिए एक ही बार में तय' नहीं होगा।

नेटाल विधानसभा के विपक्षी नेता श्री बिन्सने यह सिद्ध करनेके लिए कि भारत में संसदीय मताधिकारपर आधारित चुनावमूलक प्रातिनिधिक संस्थाएँ मौजूद हैं, बड़े ही सटीक प्रमाण पेश किये। बादमें, रिपोर्टके अनुसार, उन्होंने कहा :

मेरी समझ में मैंने सिद्ध कर दिया है, उस आधारपर विधेयक गलत है। भारत में प्रातिनिधिक संस्थाएँ और चुनावका सिद्धान्त स्वीकार किया जाता है। भारतीयों को संसदीय मताधिकार प्राप्त है। नगरपालिकाका मताधिकार तो बहुत व्यापक है। वह स्थानीय शासनपर असर डालता है। फिर, अगर यह स्थिति है तो आपके इस विधेयकको स्वीकार करनेका क्या उपयोग? मैंने विधानसभा के सामने जो तथ्य पेश किये हैं वे बड़ेसे-बड़े अधिकारी विद्वानोंके जो ग्रन्थ में पा सका उनसे लिये गये हैं। उनसे अत्यन्त निर्णायक रूपमें सिद्ध हो जाता है कि भारत में इन संस्थाओंका अस्तित्व है। एक विषय में तो बिलकुल सन्देह है ही नहीं। अगर यह विधेयक कानून बन गया तो आप लम्बी मुकदमेबाजी, कठिनाइयों और मुसीबतों में फँस जायेंगे। विधेयक काफी स्पष्ट या निश्चयात्मक नहीं है। हम कुछ अधिक स्पष्ट और निश्चयात्मक वस्तु चाहते हैं। मैं चाहता हूँ कि इस प्रश्नका फैसला हो जाये और मैं फैसला करनेमें जो भी मदद कर सकूँगा, सब करूँगा। परन्तु मेरा खयाल है कि यह विधेयक गलत तरीकेपर बनाया गया है। इसमें एक बात ऐसी है, जो सही नहीं है। यह हमें अन्तहीन मुकदमेबाजी; कठिनाई और मुसीबत में डाल देगा। इस विधेयकके दूसरे वाचनके पक्ष में मत देना मेरे लिए असम्भव होगा।

श्री बेल विधानसभाके एक प्रमुख सदस्य और नेटालके एक प्रमुख वकील हैं। वे उपनिवेशके सामान्य कानूनके अन्तर्गत भारतीयोंका मताधिकार कायम रखनेके विरोधी हैं। फिर भी वे श्री बिन्सके विचारोंसे सहमत थे। उन्होंने भारतीयों और समस्त