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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आश्विनकी अमावसको होती है, फलतः उस दिन खूब रोशनी की जाती है। परन्तु होली पूर्णिमाको होनेके कारण उस दिन रोशनी अशोभन ही होगी।

[अंग्रेजीसे]

वेजिटेरियन,२५-४-१८९१

१६. भारतके आहार'

अपने अभिभाषणके विषयपर आनेके पहले मैं आपको बता देना चाहता हूँ कि इस कार्य के लिए मेरी योग्यता क्या है। जब मिलने भारतका इतिहास' लिखा, उसने अपनी अत्यन्त रोचक प्रस्तावनामें बताया था कि भारतकी यात्रा कभी न करने पर भी, भारतीय भाषाओंका ज्ञान न रखनेपर भी वह उस पुस्तकको लिखनेका अधिकारी कैसे है। इसलिए मैं समझता हूँ कि उसके उदाहरणका अनुकरण करना मेरे लिए उचित ही होगा। बेशक, किसी कामके लिए अपनी योग्यताका उल्लेख करनेकी कल्पना स्वयं ही व्याख्याता या लेखकमें किसी-न-किसी प्रकारको योग्यता बतानेवाली होती है, और मैं मंजूर करता हूँ कि मैं “ भारतके आहारों" पर बोलनेके लिए पूर्णतः उपयुक्त व्यक्ति नहीं हूँ। मैंने अपने ऊपर यह कार्य इसलिए नहीं लिया कि मैं इस विषयपर बोलनेके लिए बिलकुल योग्य हूँ; बल्कि इसलिए लिया है कि ऐसा करके मैं उस प्रयोजनकी सिद्धि में सहायक हूँगा, जो मेरे और आपके--दोनोंके दिलोंमें बसा है। मैं जो--कुछ कहनेवाला हूँ उसका मुख्य आधार मेरा बम्बई प्रदेशका अनुभव होगा। अब, जैसा कि आप जानते हैं, भारत एक विशाल प्रायःद्वीप है। उसकी आबादी २८,५०,००,००० है। वह रूसको छोड़कर समूचे यूरोपके बराबर है। ऐसे देशमें विभिन्न भागोंके आचार-व्यवहारमें भिन्नता होना स्वाभाविक ही है। इसलिए, अगर भविष्यमें कभी आपको मेरे कहनेसे कुछ भिन्न बातें सुननेको मिलें तो मेरा निवेदन है कि आप उपर्युक्त वस्तुस्थितिको भूल न जायें। सामान्य रूपसे मेरा कथन सारे भारतपर लागू होगा।

मैं अपने विषयके तीन हिस्से कर लूंगा। पहले तो मैं सम्बन्धित आहारोंपर निर्वाह करनेवाले लोगोंके विषयमें प्रारम्भिक परिचयके तौरपर कुछ कहूँगा। दूसरे, आहारोंका वर्णन करूँगा और तीसरे, उनका उपयोग आदि बताऊँगा।

आमतौरपर माना जाता है कि भारतके सब लोग अन्नाहारी है। परन्तु यह सही नहीं है । यहाँतक कि सब हिन्दू भी अन्नाहारी नहीं हैं। परन्तु यह कहना

१. वेजिटेरियनके६ मई, १८९१ के अंक में निम्नलिखित उल्लेख पाया जाता है: “ शनिवार २ मई, ब्लम्सवरी हाल, हार्ट स्ट्रीट, ब्लूम्सबरी...। श्रीमती हैरिसनके बाद श्री मो० क० गांधी खड़े हुए। उन्होंने पूर्व-व्याख्यात्रीको बधाई दी और अपने 'भारतके आहार' शीर्षक लिखित भाषगके सम्बन्धमें क्षमा-याचना करनेके बाद उसे पढ़ना शुरू किया। आरम्भमें वे कुछ घबड़ा गये थे।" यहाँ दिया गया मूलपाठ उस लिखित भाषणका है जो वेजिटेरियन सोसाइटीकी पोर्टसमथकी बैठकमें दुबारा पढ़ा गया था।