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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

गरीबोंको उपलब्ध हैं। दुखकी बात यही है कि वे कभी इनको आहारके रूपमें छककर नहीं खाते। आमतौरपर हम मानते हैं कि फलोंसे बुखार, दस्त आदिकी बीमारी हो जाती है। गर्मीके दिनोंमें, जब हमेशा हैजेका डर रहता है, सरकारी अधिकारी खरबूजे और इसी प्रकारके दूसरे फलोंकी बिक्री रोक देते हैं। और अनेक मामलोंमें यह ठीक ही होता है। जहाँतक सूखे फलोंका सम्बन्ध है, जितने प्रकारके फल यहाँ मिलते हैं वे सब वहाँ उपलब्ध हैं। कवची मेवोंकी कुछ ऐसी किस्में होती हैं, जो यहाँ नहीं पाई जातीं। दूसरी ओर यहाँको कुछ किस्में भारतमें नहीं देखी जाती। कवची फल आहारके तौरपर काममें नहीं लाये जाते। इसलिए, ठीक कहें तो, उन्हें 'भारतके आहारों' में शामिल नहीं करना चाहिए। अब, अपने विषयके आखिरी हिस्सेपर आनेके पहले, मैं आपसे निवेदन करूँगा कि आप मेरे बताये हुए ये आहार-विभाग याद रखें:पहला, रोटी बनानेके अनाज, अर्थात् गेहूँ, ज्वार आदि; दूसरा, सालन या शोरबा बनानेके लिए दालें; तीसरा, हरी शाक-सब्जियाँ; चौथा,फल; और पाँचवाँ तथा आखिरी, कवची मेवे ।

बेशक, मैं आपको विविध प्रकारके भोजन बनानेके तरीके नहीं बताऊँगा। यह मेरे बशकी बात नहीं। मैं सामान्य तरीका बताऊँगा, जिससे वे ठीक उपयोगकी दृष्टिसे पकाये जाते हैं। आहार-चिकित्सा या आहारके आरोग्य-शास्त्रकी खोज इंग्लैंडमें अपेक्षाकृत हालमें हुई है। भारतमें हम इसका प्रयोग स्मरणातीत कालसे करते चले आ रहे हैं। वहाँके वैद्य और हकीम दवाओंका उपयोग तो करते हैं, परन्तु वे अपनी बताई हुई दवासे ज्यादा आहारके असरपर निर्भर करते हैं। कुछ बीमारियोंमें वे आपसे नमक न खानेको कहेंगे, अनेकमें आपसे खट्टी चीजों आदिका परहेज करायेंगे। क्योंकि, प्रत्येक आहार औषधिके रूपमें अपना विशेष गुण रखता है। रोटी बनानेके लिए उपयोगी अनाज आहारकी सबसे महत्त्वपूर्ण वस्तु है। सुविधाके लिए मैंने आटेसे बननेवाली चीजको 'ब्रेड' कहा है, परन्तु उसे 'केक' नाम देना ज्यादा अच्छा होगा। मैं इसके बनानेकी सारी प्रक्रियाका वर्णन नहीं करूँगा। सिर्फ इतना कह दूं कि हम चोकरको फेंकते नहीं है। चपातियाँ प्रायःताजी और आम तौरपर शुद्ध किये हुए मक्खन के साथ गरम-गरम खाई जाती हैं। भारतीयोंके लिए इनका वही स्थान है, जो अंग्रेजोंके लिए मांसका है। आदमीकी खुराकका अन्दाजा इससे लगाया जाता है कि वह कितनी रोटियाँ खाता है। दाल और शाक-सब्जीका हिसाब नहीं किया जाता। बिना दालके, बिना शाक-सब्जीके तो आपका भोजन हो सकता है, परन्तु रोटियोंके बिना नहीं हो सकता। विभिन्न प्रकारके अनाजोंसे और भी अनेक प्रकारकी वस्तुएँ बनाई जाती है, परन्तु वे सब रोटीके ही दूसरे रूप हैं।

शोरबा या सालन बनानेकी दाल -- जैसे मटर, मसूर--आदि पानीमें सिर्फ उबालकर बना ली जाती है। परन्तु बहुत-से मसाले डालने के कारण वह अत्यन्त स्वादिष्ट बन जाती है। इन आहारोंमें पकानेकी कलाका पूरा-पूरा प्रयोग होता है। मैने नमक, मिर्च, हल्दी, लौंग, दालचीनी आदि मसाले पड़ी हुई दाल खाई है। दालका