पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 10.pdf/११

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भूमिका

इस खण्डमें गांधीजीके जीवनके १३ नवम्बर, १९०१ से लेकर मार्च, १९११के अन्ततक की सामग्रीका समावेश हुआ है। हम इसके प्रारम्भमें गांधीजीको इंग्लैंड में चार माहके व्यस्त प्रवासके बाद वापस दक्षिण आफ्रिका आते हुए देखते है और अन्तमें केप टाउनमें जनरल स्मट्स और संसद्के अन्य सदस्योंके साथ हाल ही में प्रकाशित प्रवासी प्रतिबन्धक विधेयकमें संशोधन करानेके लिए धैर्यपूर्वक अनवरत प्रयत्न करते हुए। मार्च १९११के गांधी-स्मट्स पत्रव्यवहारने अस्थायी समझौतेका रास्ता तैयार किया और मार्चमें यह समझौता सम्पन्न हुआ।

खण्ड में समाविष्ट सामग्री सदाकी तरह अत्यन्त वैविध्यपूर्ण है। सम्बद्ध काल गांधीजीके विचारोंके परिपाक और उनकी आन्तरिक विकास-यात्राको एक निर्णायक मंजिलको निर्दिष्ट करता है। धार्मिक जीवन बितानेकी अपनी अदम्य आकांक्षाओंको सन्तुष्ट कर सकने योग्य आदर्शोको स्पष्ट शब्दोंमें बाँधने और उन्हें कार्यका रूप देनेकी कोशिश उन्होंने इसी अवधिमें की। आदर्शोके शाब्दिक स्पष्टीकरणके प्रसंगमें उन्होंने इंग्लैंडसे लौटते हुए जहाजपर अपना अल्पकाय ग्रन्थरत्न 'हिन्द स्वराज्य' लिखा और उन्हें कार्यान्वित करने के प्रयत्नके सिलसिलेमेंटॉल्स्टॉय फार्मपर अनशासनबद्ध सामुदायिक जीवनके प्रयोग शुरू किये। ये प्रयोग जून, १९१० में प्रारम्भ हुए और निरन्तर चलते रहे। जिस प्रकार पहले उनके विचार और व्यवहार रस्किन तथा थोरोके प्रभावसे पोषित हुए थे, उसी प्रकार अब वे अपने विचारों और व्यवहारके पोषणके लिए टॉलस्टॉयसे प्रभाव ग्रहण कर रहे थे। यह एक सूचक संयोग है कि इस खण्डका आरम्भ "प्रस्तावना : टॉलस्टॉयके 'एक हिन्दूके नाम पत्र 'की" शीर्षक प्रकरणसे होता है। 'हिन्द स्वराज्य' के अपने वक्तव्यका युक्तियुक्त मण्डन करते हुए वायबर्गको लिखा हुआ उनका पत्र (पृष्ठ २६३-६) बताता है कि वानप्रस्थ जीवनमें गांधीजीकी आस्था कितनी दढ़ हो चुकी थी। वे काम और अर्थको पीछे छोड़ चुके थे: अपने विचारोंकी सचाईमें उन्हें कोई सन्देह नहीं रह गया था और उनके कदम शान्त भावसे मोक्षोन्मुख धर्मकी राहपर बढ़ते जा रहे थे। मगनलाल गांधीको लिखे गये उनके पत्रोंमें जहाँ एक ओर मामूली कामकाजसे सम्बन्धित तुच्छ बातोंकी लम्बी चर्चा है, वहाँ दूसरी ओर ब्रह्मचर्य (पृष्ठ ३.१७), शरीर-श्रमका गौरव (पृष्ठ ३२९३०) और "प्रभु-रूपी प्रीतमसे मिलने के लिए आत्मा-रूपी प्रेमिकाकी उत्कट याचना", (पृष्ठ ३३३) आदि ऐसे धार्मिक प्रश्नोंकी बारीक छानबीन भी है, जो लेखकके लिए उस समय तक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हो गये थे। गोखले और नटेसनको लिखे हए पत्र यद्यपि भिन्न कोटिके है, किन्तु उनकी सरसता पिछले पत्रोंसे किसी भी प्रकार कम नहीं है। "रंग-विद्वष" (पष्ठ३०४-०५) और "असभ्य कोना (पृष्ठ ३१५-६) आधुनिक सभ्यताके कूरूप पहलओंकी वैसी ही मार्मिक आलोचना मिलती है, जैसी 'हिन्द स्वराज्य' में। “एक और विश्वासघात" (पृष्ठ ३१९-२०), "गिरमिटियोंके संरक्षककी रिपोर्ट"

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