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(पृष्ठ ३३१-३२) और "नारायणस्वामी" (पृष्ठ ३६३-४)आदि लेख राजनीतिक टिप्पणियोंकी किस्मके हैं और उनमें जहाँ एक ओर सरकारकी कड़ी आलोचना की गई है, वहाँ दूसरी ओर संघर्षके लिए लोगोंका आहवान भी किया गया है। खण्डके अन्तमें एक दुर्लभ प्रकरण (पृष्ठ ५३१-३४) है, जिसमें स्वयं गांधीजी द्वारा तैयार की गई जनरल स्मट्ससे उनकी भेंटकी रिपोर्ट दी गई है।

३० नवम्बर, १९०९को जब गांधीजी दक्षिण आफ्रिकामें उतरे तो परिस्थिति अत्यन्त निराशाजनक प्रतीत होती थी। इधर अनुयायी-जन कई वर्ष तक लगातार लड़ते रहने के बाद थक गये थे और आराम लेना चाहते थे और उधर सरकार उन इस कमजोरीका लाभ उठाने के लिए कमर कसे बैठी थी। अगस्त, १९०९में इंग्लैंडसे रवाना होते हुए स्मट्सने कहा था कि “ट्रान्सवालके अधिकांश भारतीय तो आन्दोलनसे बिलकुल ऊब गये हैं।" और दक्षिण आफ्रिका पहुँचकर उन्होंने उन सत्याग्रहियोंका संकल्प-बल तोड़नेके लिए, जो अपने निश्चयपर अब भी अटल थे, अपना दमन-चक्र और जोरसे चलाना शुरू किया। सजाएँ और कठोर कर दी गईं, जेल-जीवन कष्टप्रद बनाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी गई, अनेक भारतीयोंको भारत निर्वासित कर दिया गया और निर्वासनके दरम्यान उनके साथ भरपूर सख्ती बरती गई; और जब इससे भी काम न चला तो बच्चों और स्त्रियोंके खिलाफ भी युद्ध छेड़ दिया गया। लेकिन सत्याग्रहमें गांधीजीका विश्वास डिगा नहीं, और अधिक गहरा हो गया। उन्हें इस बातकी प्रतीति हो गई थी कि वे एक अभूतपूर्व संघर्षका - आधुनिक युगके सबसे जबरदस्त संघर्षका-नेतत्व कर रहे हैं। अपने सहकर्मियोंकी वीरता और संघर्षकी महत्तापर उन्हें अभिमान था, किन्तु साथ ही उनमें गहरी वैयक्तिक नम्रता भी थी। आश्रमके "फीनिक्स" नामके औचित्यकी चर्चा करते हुए मगनलालके नाम अपने एक पत्रमें वे कहते हैं: “मेरा नाम भुला दिया जाये, यह चाहता हूँ। मेरी इच्छा यह है कि मेरा काम रहे। नाम भुला दिया जाय, तभी काम रहेगा।" (पृष्ठ ६९) । अथच, "हम अज्ञानवश मान लेते हैं कि हमें अपनी मेहनतसे रोटी मिलती है" (पृष्ठ ८३)। और, मानो गांधीजीकी इस उक्तिकी सत्यता सिद्ध करनेके लिए ही, जिस दिन वे केप टाउन पहुँचे, उसी दिन उन्हें टाटाका बिन-मांगे भेजा हुआ २५,०००)का चेक मिला।

किसी राजनीतिक संघर्ष में सत्याग्रहकी शक्तिके सहारे लड़नेका मतलब था लोकमतके सहारे लड़ना। गांधीजीने केवल इंग्लैंडमें या अपने देशबन्धुओंके बीच ही नहीं, बल्कि दक्षिण आफ्रिकाके उन गोरोंके बीच भी, जिनके पूर्वग्रहोंके खिलाफ वे जूझ रहे थे, लोकमत तैयार करनेका कार्य प्रारम्भ कर दिया। इंग्लैंडसे रवाना होनके पूर्व उन्होंने वहाँ लोगोंकी सहियाँ इकट्ठी करनेका विराट् अभियान चलाया था, जिसमें ब्रिटिश और भारतीय स्वयंसेवक दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंके आन्दोलनके पक्षमें लोगोंसे सहकारकी मांग करते हुए घर-घर घूमे थे। दक्षिण आफ्रिका लोटकर उन्होंने समाचारपत्रोंको चिट्रियाँ लिखीं, उनके प्रतिनिधियोंको मुलाकातें दीं और जिस मंचसे भी सम्भव हुआ, आन्दोलनके पक्षमें भाषण किये। उन्होंने गोरोंके मनसे उनके निराधार

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