पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 10.pdf/१७

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ग्यारह

परम्पराओंके अनुसार गढ़ने की आजादी, और अपना विकास तथा अपनी भूलोंका संशोधन भी अपनी ही आन्तरिक और इस प्रकार नैतिक सामर्थ्य के द्वारा करनेकी आजादी। वे पश्चिमके उधार लिये हुए आदर्शोकी चकाचौंधसे चमत्कृत होकर अपनेको उनके अनुसार ढालने लगें, यह कदापि इष्ट नहीं है। यह था गांधीजीका वक्तव्य। और इसलिए 'हिन्द स्वराज्य' में अहिंसक उपायोंके प्रतिपादनसे आगे जाकर गांधीजीने उद्योग और राजनीतिके क्षेत्रोंमें, उस समय भारतका जो आधुनिकीकरण हो रहा था, उसकी सख्त टीका की है। गांधीजीने पश्चिमी सभ्यताको बहत करीबसे देखा था और प्रतिस्पर्धामलक, उद्योग-प्रधान और नीतिधर्मके प्रति लापरवाह उस समाजकी बुराइयोंसे - जिन्हें अब सब लोग स्वीकार करने लगे थे-वे बहुत विचलित हो उठे थे। उनका खयाल था कि वक्त अभी गुजरा नहीं है और उनके अदृश्य जहरसे भारत अपनेको अब भी बचा सकता है और यदि वह अपनेको उससे बचा सके तो राजनीतिक स्वतन्त्रता उसे सहज ही मिल जायेगी।

बादमें इस पुस्तिकाके कारण उनपर मध्ययुगीनताका दोष लगाया गया और कुछ लोगोंने तो उसका उपयोग भारतके शिक्षित वर्गोंकी नजरोंमें उनके नेतृत्वको गिरानेके लिए भी किया। लेकिन गांधीजी अपने विचरोंपर अटल रहे। सरल और अकृत्रिम जीवनको वे व्यक्ति या समुदाय, दोनोंके स्वस्थ विकास और कल्याणके लिए आवश्यक मानते थे और दक्षिण आफ्रिकामें रहते हुए ही उन्होंने अपने और अपने ऐसे सहकारियोंके जीवनको, जिन्होंने उनका नेतृत्व स्वीकार कर लिया था, इसी आदर्शके अनुसार ढालना शुरू कर दिया था। टॉल्स्टॉय फार्म यों तो सत्याग्रहकी लड़ाईसे उत्पन्न आवश्यकताओंको दृष्टिमें रखकर खोला गया था; और वहाँ जेल-यात्री सत्याग्रहियोंके परिवारोंको रखा जाता था और भरसक कम खर्च में उनके पालन-पोषणकी व्यवस्था की जाती थी। किन्तु गांधीजीने इस अवसरका उपयोग सहयोग, स्वावलम्बन, शरीरश्रम और वैयक्तिक जीवनमें, खासकर आहार और सेक्समें, संयमपर आधारित सामदायिक जीवनके नये रूपोंके प्रयोग करनेके लिए किया। टॉल्स्टॉय फार्मने मानो उनकी भावी जीवन-चर्याकी रूपरेखा निश्चित कर दी। इस दृष्टिसे, टॉलस्टॉय फार्मके उनके इस प्रयोगका बहुत महत्त्व है: उनके आध्यात्मिक विकासमें वह एक रचनात्मक दौरका सूचक है और इस रूपमें गांधीजीके मनमें भी उसकी स्मृति सदा सुरक्षित रही।

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