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दस

नेताके नाते, जिसका उद्देश्य भारतीयोंके आत्मसम्मानकी रक्षा करना और गोरी जातियोंकी श्रेष्ठता और आधुनिक सभ्यताकी दुरभिमानपूर्ण मान्यताओंसे लड़ना था, उनके लिए यह जरूरी हो गया कि धींगराके कृत्यसे जो सवाल उठ खड़े हुए थे, उनपर बे सार्वजनिक रूपसे अपनी स्थिति स्पष्ट कर दें। पश्चिममें इतने दिन रहनेके बाद पश्चिमी सभ्यताकी नैतिक वीरानीका उन्हें पूरा परिचय मिल गया था और उससे वे बहुत असन्तुष्ट थे। प्रजातीय भेदभावके पूर्वग्रहोंसे मुक्त होनेका दावा करनेवाली लन्दनकी उदार दलीय सरकार दक्षिण आफ्रिकाकी गोरेतर आबादीको कोई सांविधानिक सुरक्षा नहीं दे पा रही थी और वहाँ दक्षिण आफ्रिकाके राज्योंका स्वशासी संघ बनने जा रहा था। अगर सत्याग्रह दक्षिण आफ्रिकाके भारतीय समाजके सीमित उद्देश्य प्राप्त करने में भी असफल हो गया था या असफल हो गया मालूम होता था तो फिर अंग्रेजोंके खिलाफ भारतमें अहिंसक उपायोंकी सफलताकी आशा कैसे की जा सकती थी? 'हिन्द स्वराज्य में गांधीजीको इस कठिन प्रश्नका उत्तर देना था। पाठक और सम्पादकके संवादके रूपमें लिखित इस पुस्तकमें गांधीजीको बार-बार सत्याग्रहकी शक्तिमें अपना विश्वास छोड़ने के लिए लुभानेवाला 'पाठक' उन भारतीय युवकोंका प्रतिनिधि है, जिनसे वे लन्दनमें रहते हुए मिले थे और जिनके साथ इस प्रश्नपर उनकी चर्चाएं हुई थीं। अंग्रेजोंको भारतसे निकालनेके विशुद्ध राजनीतिक उद्दश्य तक ही विवाद सीमित रखा जाय तो इस प्रश्नका कोई तर्क शुद्ध उत्तर नहीं था, किन्तु उसपर नीतिधर्मके प्रसारके द्वारा राष्ट्रीय पुनरुत्थानकी व्यापक समस्याके रूपमें विचार किया जाये तो गांधीजीके पास इसका उत्तर था और उन्होंने 'हिन्द स्वराज्य में इस उत्तरकी विस्तृत व्याख्या की है। उन्होंने इस उत्तरपर नेताके रूप में प्राप्त अपनी प्रतिष्ठाकी बाजी लगा दी और उसके समर्थनमें हिन्दू शास्त्रोंके वचनोंको उद्धृत किया। उन्होंने बताया कि हमारे शास्त्र न केवल यह कहते है कि “मुक्ति मानव-जातिके लिए प्राप्त करने योग्य सर्वोत्तम वस्तु है;" वे यह भी कहते है कि उसका " तात्कालिक लक्ष्य मुक्ति है" (पृष्ठ २६४)।

गांधीजीकी मान्यता थी कि राजनीतिक व्यवस्थाका औचित्य उसमें अन्तहित उसके नैतिक आशयमें है। इसी अपनी अन्तर्दृष्टि और दूरदर्शिताके इसी परिचायकके सिद्धान्तपर जोर देते हए गांधीजी अपने आलोचकोंसे पछते हैं : आप केवल शासकोंको परिवर्तन तो नहीं चाहते? अगर भारतीय जनताको नैतिक दृष्टिसे मूल्यवान् और आत्मगौरवसे युक्त जीवन जीना है तो भारतको नैतिक स्वाधीनता भी प्राप्त करनी चाहिए और राजनीतिक स्वाधीनता भी। नैतिक गुलामीके लक्षण क्या है ? इसके लक्षण है यंत्र और शिक्षा-साध्य धन्धोंमें लगे हुए लोग- अर्थात् वकील, डॉक्टर और सरकारी अधिकारी। ये लोग जानेअनजान भारतमें ब्रिटिश शासनको बनाये रखने में मदद दे रहे हैं। यह नया वर्ग, ब्रिटिश शासनाधिकारी और नये-नये यन्त्र--ये सब मिलकर भारतीय जनताका शोषण कर रहे हैं। इसके सिवा, शासकोंके अन्धानुकरणमें यह नया शिक्षित समुदाय हमारे जीवन में रहन-सहनकी ऐसी नई रीतियाँ दाखिल कर रहा है, जिनका लक्ष्य शरीर-सुख है, किन्तु जो आत्माको कमजोर कर रही है। नैतिक स्वाधीनताका अर्थ है भारतीयोंके लिए अपनी आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक संस्थाएँ अपने नीतिबोध और अपनी पुरानी

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