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५५. पत्र : ए० एच० वेस्टको
 
जनवरी १२, १९१०
 

प्रिय वेस्ट,

मेरी अक्सर इच्छा हुई है कि आपको एक खानगी पत्र लिखूं, लेकिन लिख नहीं पाया ।


अब आपको कैसा लगता है -- शरीर, मन और आत्माकी दृष्टिसे ? क्या आप पहलेसे ज्यादा सुखी हैं ? कुटुम्बका वातावरण कैसा है ? क्या नये प्रबन्धसे श्रीमती वेस्टको संतोष तो है ? क्या देवी अब सुखी है ? बस्ती [ फीनिक्स सेटिलमेंट ] के और लोग कैसे हैं ?

मुझे तो यहाँ कई मोर्चोंपर जूझना पड़ रहा है। इस समय मैं जिन परिस्थितियोंसे घिरा हूँ वे बिल्कुल अनुकूल नहीं हैं। लेकिन मुझे लगता है, मेरा मन सुखी है। आप जानते ही हैं, मेरा दिमाग बहुत ज्यादा चलता है - कभी शान्त नहीं रहता । अब मैं कुछ साहसपूर्ण प्रयोग कर रहा हूँ। 'फेरीका नीतिशास्त्र केवल पूर्वाभास कराता है कि मेरे जीवनमें क्या आनेवाला है। मैं जितना अधिक देखता हूँ, आधुनिक जीवनसे उतना ही अधिक असन्तोष होता जाता है। मुझे उसमें कोई अच्छाई दिखाई नहीं देती। लोग अच्छे होते हैं, परन्तु वे इस मिथ्या विश्वासके शिकार बन जाते हैं कि वे भलाई कर रहे हैं । और वे अपने-आपको दुःखी बना लेते हैं। मैं जानता हूँ कि इस विश्वासके मूलमें एक भ्रान्ति है। और हो सकता है कि मैं भी, जो अपने आसपास- की चीजोंकी जाँच करनेका दावा करता हूँ, भ्रममें पड़ा मूर्ख ही होऊँ । फिर भी यह खतरा तो हम सभीको उठाना है। सच बात यह है कि जो उचित लगे वही करना हम सबका कर्तव्य है। और जहांतक मेरा सवाल है, मुझे लगता है कि आधुनिक जीवन ठीक नहीं है। मेरा यह विश्वास जितना अधिक दृढ़ होता जाता है, मेरे प्रयोग भी उतने ही साहसपूर्ण होते जाते हैं।

आपका हृदयसे,
 
मो० क० गांधी
 

[ पुनश्च : ]

इसे लिखते समय कुछ बाधा आ गई। लेकिन फिलहाल इतना काफी है।

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (सी० डब्ल्यू ० ४४१३) से । सौजन्य : ए० एच० वेस्ट |

१. ए० एच० वेस्टकी बहन, जिन्होंने अपना यह भारतीय नाम रखा था ।

२. यहाँ इसी शीर्षक से प्रकाशित लेखका उल्लेख है; देखिए पृष्ठ १३६-३८ ।

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