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५६. रायप्पनको भोज

सर्वश्री रायप्पन और उनके साथियोंको दिये गये भोजका' महत्त्व सामयिक ही नहीं; उसकी अपेक्षा कुछ अधिक है। सत्याग्रहियों का स्वागत करनेके लिए कोई चालीस जिम्मेदार यूरोपीय स्त्री-पुरुष भोजमें उपस्थित थे, यह स्वतः बड़े महत्त्वकी घटना है। श्री हॉस्केन और माननीय श्री डूके भाषण सुन्दर और हृदयस्पर्शी थे। दोनोंने आशा प्रकट की कि निकट भविष्यमें समझौता हो जायेगा । प्रीतिभोजकी मेजोंपर सभी वर्गों और समुदायोंके लगभग सौ भारतीय बैठे थे। इस सबसे प्रकट होता है कि सत्याग्रही मरे नहीं हैं, बल्कि बहुत ज्यादा जीवित जागृत हैं। श्री काछलियाका पूरा भाषण हमारे गुजराती स्तम्भोंमें दिया गया है। उसमें उन्होंने जनरल बोथा और जनरल स्मट्सको स्मरण दिलाया है कि यदि आज सत्याग्रहियोंकी संख्या उतनी नहीं है जितनी पहले थी तो उनकी यह हालत वैसी ही है जैसी पिछले युद्ध में बोअरोंकी थी । सन्धि तब हुई थी जब बोअरोंकी संख्या खतरनाक हद तक घट गई थी। श्री काछलियाका सारा भाषण उस व्यक्तिके ही अनुरूप था । उसमें आशा, शक्ति और संघर्षकी मंजिल तक पहुँचनेका अजेय निश्चय भरा हुआ था ।

श्री जोजेफ रायप्पनका भाषण संक्षिप्त और प्रसंगके अनुकूल था । उन्होंने कहा कि वे ट्रान्सवालमें अपना कर्तव्य पूरा करनेके लिए आये हैं और उन्हें आशा है कि वे उसे पूरा कर सकेंगे ।

समारोह विशेष रूपसे सफल रहा और हम उसके संयोजकोंको उनके कार्यके लिए बधाई देते हैं ।

[ अंग्रेजीसे ]

इंडियन ओपिनियन, १५-१-१९१०

१. यह जनवरी ७, १९१० को दिया गया था ।

२. ब्लूमफांटीनके फ्रेंड नामक पत्रके सम्पादक और आरेंज रिवर कॉलोनीके संसद सदस्य; देखिए " हॉस्केनकी सभा ", पृष्ठ १३८ ।

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