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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यदि वे ऐसा करें, तो इससे अशिक्षितोंकी सच्ची सेवा हो सकेगी।' तभी अशि- क्षितोंके दुःखकी वे कल्पना कर सकेंगे। ऐसा करनेसे सच्ची ईमानदारी क्या है, यह भी वे समझेंगे ।

अब हम ट्रान्सवालके शिक्षित भारतीयोंपर नजर डालें। यदि उन्होंने संघर्ष में ठीक-ठीक भाग लिया होता, तो कुछ और ही बात बनती। संघर्षका अन्त हो चुका होता। किन्तु उन्होंने इसके बजाय शरीर-सुख, धनोपार्जन और ऐशो-आरामकी तरफ देखा। इसलिए अशिक्षित फेरीवाले भी ढीले पड़ने लगे हैं और संघर्ष लम्बा होता जा रहा है। चिन्ता इसकी नहीं कि संघर्ष लम्बा हो रहा है; किन्तु हमने जो यह आशा की थी कि संघर्षके अन्तमें फेरीवालोंमें शक्ति उत्पन्न हो जायेगी, वह पूरी होती नज़र नहीं आती। और यदि यह आशा पूरी नहीं होती, तो उनकी हालत जैसीकी- तैसी बनी रहेगी। यदि ऐसा हुआ, तो संघर्षको उसका सच्चा अर्थ प्राप्त नहीं होगा।

अभी भी समय है। शिक्षित व्यक्ति श्री रायप्पनकी तरह फेरी लगा सकते हैं । फेरी लगानेके अपराधमें लोगोंको पकड़ा जा रहा है, इसलिए उनकी गिरफ्तारीमें भी बाधा नहीं होगी। जरूरत केवल हिम्मत करनेकी है। क्या वे ऐसा करेंगे ?

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २९-१-१९१०

७०. जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

गोरे व्यापारीका ओछापन

जब सत्याग्रहकी लड़ाई आरम्भ हुई तब एक गोरे व्यापारीकी पेढ़ीने भारतीय व्यापारियोंके साथ व्यापार बन्द कर दिया था। इसपर भारतीय व्यापारियोंने निश्चय किया कि जबतक वह क्षमा न माँगे और जुर्माना न दे तबतक कोई भी उससे व्यापार न करे । इस निश्चयसे सम्बन्धित कागजमें यह भी कहा गया है कि इसपर हस्ताक्षर करनेवाला कोई भी भारतीय उक्त गोरेके साथ अकेला व्यापार करेगा तो उसे भारी जुर्माना देना होगा। अब यह गोरा बेचैन हो उठा है। भारतीयोंके साथ व्यापार करनेका लोभ उसे फिर हुआ है। इससे उसने गुप्त रूपसे क्षमा मांगने और सत्याग्रहकी लड़ाई में निश्चित रकम देनेकी खबर भेजी थी । भारतीय व्यापारी यह विचार कर ही रहे थे कि उसकी गुप्त क्षमा याचना स्वीकार नहीं की जानी चाहिए; इसी बीच वह एक कदम पीछे हट गया और इस शर्तपर कि उसका नाम प्रकाशित न किया जाये उसने सिर्फ दस पौंड नकद देनेका प्रस्ताव किया। किन्तु भारतीय व्यापारियोंने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया है और उसके साथ व्यापारकी कोई परवाह नहीं की है। आशा है कि हमारे व्यापारी अपनी इस बातपर जमे रहेंगे।

१. देखिए “फेरीका नीतिशास्त्र", पृष्ठ १३६-३८ । Gandhi Heritage Portal