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जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

पारसी रुस्तमजी

पारसी रुस्तमजीने जेलके डॉक्टरके विरुद्ध लापरवाहीकी शिकायत की थी और गवर्नरको जोर देकर बताया था कि उनकी पसलीमें दर्द रहा करता है। इस कारण वे जोहानिसबर्गकी जेलमें लाये गये हैं और वहाँ उनकी जाँच किसी दूसरे डॉक्टरसे कराई जायेगी। श्री रुस्तमजीने सन्देश भेजा है कि उनकी हालत चाहे जितनी बुरी हो जाये, वे अन्ततक लड़ना चाहते हैं। मैं किसी ऐसे नये भारतीय अथवा एक बार हार खाये हुए भारतीयकी खोजमें हूँ जो उनके इस उत्साहका अनुकरण करे। श्री रुस्तमजी १० फरवरीको छः महीनेकी सजा पूरी करेंगे। उन्होंने एक सन्देशमें यह इच्छा प्रकट की है कि जेलके फाटकपर अधिक लोग न आयें; उनको स्वागत समारोहकी कोई आवश्यकता नहीं है। वे किसी भी प्रकारकी धूमधामके बिना शहरमें प्रवेश करना चाहते हैं।

रायप्पनका निश्चय

देश-निकाला होनेसे पहले श्री रायप्पनने मुझे बताया कि उन्होंने सदा गरीबी में रहनेका निश्चय किया है और वे अपना निर्वाह सदा मजदूरीसे ही करना चाहते हैं । वे इस निश्चयपर दृढ़ रहेंगे तो इसका परिणाम अच्छा होनेकी सम्भावना है। श्री रायप्पन, श्री डेविड ऐंड्र और श्री सैम्युअल जोजेफको जेपी स्टेशनसे बारह बजेकी गाड़ीसे प्रिटोरिया ले गये हैं। उनको वहाँसे सम्भवतः नेटाल भेजा जायेगा ।

थम्बी नायडू

श्री एन० एस० पडियाची, श्री एन० गोपाल और श्री एन० एस० पिल्ले शनि- वारको रिहा कर दिये गये। श्री नायडू जैसे भारतीयको रिहा होनेपर भी किसीने बधाईका एक पत्र या तार नहीं दिया। श्री अस्वात जैसे ऊँचे दर्जेके भारतीय रिहा हुए; और इसपर भी किसीका ध्यान नहीं गया । इसे मैं अच्छा लक्षण भी मानता हूँ और बुरा भी। मुझे लगता है कि इस प्रकार हम ऐसे साहसी लोगोंको देखते रहनेके अभ्यस्त हो गये हैं। साहस दिखाना और देशके लिए कष्ट सहना अब कोई अनोखी बात नहीं रही। इसे बुरा लक्षण इसलिए मानेंगे कि भारतीय समाज अपना शिष्टाचार दिखानेका कर्तव्य भूल गया है और सत्याग्रहके संघर्ष में काफी दिलचस्पी नहीं लेता।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २९-१-१९१०

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