पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 10.pdf/२०६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१६६
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

२. यदि गार्ड या अन्य कोई रेलवे अधिकारी किसी यात्रीको यह बतलाये कि उसके लिए अमुक डिब्बा 'रिजर्व' किया गया है, तो उल्लिखित विनियमोंके अन्तर्गत उसीको पर्याप्त 'रिजर्वेशन' मान लिया जायेगा ।

३. गार्ड या कंडक्टर या किसी भी अन्य रेलवे अधिकारीको पूर्ण अधिकार होगा कि वह कारण बताये बिना यात्रियोंको एक डिब्बेसे हटाकर दूसरेमें बैठा दे ।

४. यदि स्टेशन मास्टरकी रायमें कोई यात्री ठीक वेशभूषामें या साफ-सुथरी दशामें न हो तो उस यात्रीको पहले या दूसरे दर्जेका टिकट देनेसे इनकार कर देनेका उसे अधिकार होगा ।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २६-२-१९१०

८५. भाषण : पादरी जे० जे० डोकको दिये गये भोजमें

फरवरी १८, १९१०

इसी १८ तारीखको रातको मेसॉनिक हॉल, जेपी स्ट्रीट, जोहानिसबर्ग में पादरी जे० जे० डोकके सम्मानार्थ यूरोपीयों, चीनियों तथा भारतीयोंका एक मिला-जुला शानदार समारोह हुआ । ब्रिटिश भारतीय समाजकी ओरसे पादरी महोदयको निरामिष भोज दिया गया । श्री हॉस्केनने अध्यक्षता की। उनकी दाहिनी ओर श्री डोक तथा बाईं ओर श्रीमती डोक बैठे थे। श्री काछलिया श्री डोकके दाहिनी ओर थे । श्री क्विन तथा उनके चीनी दोस्त भी उपस्थित थे...|

भाषणके दौरान श्री गांधीने बताया कि इस शामके मेहमानके बारेमें मैं गहरी कृतज्ञताका भाव व्यक्त किये बिना कुछ नहीं कह सकता, और उसमें चन्द व्यक्तिगत बातें भी आ ही जायेंगी । यह बात उन दिनोंकी है जब श्री डोक और मैं एक- दूसरेको अपेक्षाकृत कम ही जानते थे। मैं वॉन ब्रैंडिस स्ट्रीटके एक दफ्तरमें नाजुक हालत में पड़ा था। उन्होंने मुझे उठाया और पूछा कि क्या मैं उनके घर जाना चाहूँगा। मैंने तुरन्त हामी भरी।" उनके घरमें मुझे हर तरहकी स्नेह-सुविधा प्राप्त हुई। मेरी माँ स्वर्ग सिधार चुकी हैं, मेरी विधवा बहन मुझसे ४,००० मील दूर थी, और पत्नी ४०० मील दूर । लेकिन श्रीमती डोकने मुझसे मेरी माँ और बहनका- सा व्यवहार किया। मैं उस समयका चित्र कैसे भूल सकता हूँ जब श्री डोक आधी रात गये चुपकेसे मेरे कमरेमें आते थे और देख जाते थे कि उनका मरीज जाग रहा है या सो रहा है? श्री डोकके एशियाइयोंके हितमें किये गये कार्योंके सम्बन्ध में १. यह अनुच्छेद २६-२-१९१० के इंडियन ओपिनियनमें प्रकाशित रिपोर्टसे लिया गया है, और आगेका अंश ५-३-१९१० के अंकसे । २. देखिए खण्ड ८, पृष्ठ ९२ ।