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८४. पत्र : मध्य दक्षिण आफ्रिकी रेलवे के महाप्रबन्धकको[१]

[ जोहानिसबर्ग ]
फरवरी १८, १९१०

महोदय, पिछले शनिवारकी मुलाकातमें[२] श्री गांधी और मैंने आपको जो वचन दिया था उसके अनुसार मैं रेलवे विनियमोंका मसविदा इसके साथ भेज रहा हूँ । आप देखेंगे कि इस मसविदेमें एशियाइयोंकी यात्रा-सम्बन्धी उसी प्रथाको कायम रखा गया है जिसका अबतक पालन होता आया है। किसी भी जातीय भेदभावको शामिल करके इसे अपमानजनक नहीं बनाया गया है। मेरा विनम्र मत है कि हमारा यह पत्र- व्यवहार जिन विनियमोंके बारेमें चलता रहा है, उन सभीका समावेश इसमें हो जाता है । परन्तु यदि रेलवे निकाय यह समझता हो कि जहाँतक वर्तनियोंका सम्बन्ध है वहाँतक उन विनियमोंको बरकरार रखना आवश्यक है तो मेरा सुझाब है कि वे जिस हद तक एशियाइयोंपर लागू होते हैं, उनको रद कर दिया जाये । जो मसविदा साथ भेजा जा रहा है यदि वह उपयुक्त न समझा जाये, तो आप इसके बारेमें अपनी आपत्तियाँ भेजें। मैं उनका स्वागत करूँगा और मैं उनको दूर करनेके लिए एक दूसरा मसविदा तैयार करनेकी कोशिश करूँगा। मेरी समितिकी रायमें यह मामला बहुत जरूरी है; इसलिए समिति महसूस करती है कि विनियमोंको संघीय सरकार स्थापित होनेकी राह देखे बिना ही संशोधित कर देना चाहिए । आपने यह पत्र-व्यवहार जिस मैत्रीपूर्ण ढंगसे किया है उसके लिए और इस आश्वासन के लिए कि इन विनियमोंके प्रकाशनका मंशा किसीका अपमान करना नहीं है, मेरी समिति आभारी है और उसकी सराहना करती है। मेरी समितिको आशा है कि विनियमोंमें आवश्यक संशोधन करके आपके आश्वासन और आपकी सद्भावनाको व्यावहारिक रूप दिया जायेगा ।

विनियमोंका मसविदा

१. महाप्रबन्धक (जनरल मैनेजर) द्वारा रेलगाड़ियोंमें भिन्न-भिन्न जातियों या वर्गोंके लिए अलग-अलग डिब्बोंका नियत किया जाना कानून-सम्मत होगा; और वर्ग- विशेष या जाति-विशेषके लोग अपने लिए इस प्रकार 'रिजर्व' किये गये डिब्बों में ही यात्रा कर सकेंगे, अन्य डिब्बोंमें नहीं; और यदि कोई व्यक्ति अपने वर्गके लिए रिजर्व किये गये डिब्बेके अतिरिक्त अन्य किसी डिब्बेमें यात्रा करता हुआ पाया जायेगा तो वह इन विनियमोंको भंग करनेका अपराधी माना जायेगा।

  1. अनुमान है कि इस पत्रका मसविदा गांधीजीने तैयार किया था और यह ब्रिटिश भारतीय संघके अध्यक्ष, श्री अ० मु० काछलियाके हस्ताक्षरोंसे भेजा गया था।
  2. मुलाकातका विवरण उपलब्ध नहीं है।