पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 10.pdf/२४५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
पत्र: जेल-निदेशकको
२०५

सकते हैं। स्वभावतः मेरी चिन्ता तो यह है कि मेरे किसी ऐसे कार्यसे जिसका उससे कोई सम्बन्ध न हो, इस महान संघर्षको हानि न पहुँचे। अगर मुझे यह मालूम न हो गया होता कि दक्षिण आफ्रिकामें भी हिंसात्मक साधनोंके लोकप्रिय होनेका खतरा है और मेरे सैकड़ों देशभाइयोंने और कई अंग्रेज मित्रोंने भी मुझसे यह आग्रह न किया होता कि मैं भारतके राष्ट्रीय आन्दोलनके सम्बन्धमें अपने विचार प्रकट करूँ तो मैं संघर्षकी खातिर अपने विचारोंको लेखबद्ध न करता । लेकिन आज मेरा जो स्थान है उसे देखते हुए, उपर्युक्त परिस्थितियोंमें इस पुस्तकके प्रकाशनको टालना मेरे लिए कायरता होती ।

मो० क० गांधी

{{left[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २-४-१९१०}}

१२४. पत्र : जेल-निदेशकको

[ जोहानिसबर्ग ]
मार्च २२, १९१०

महोदय, मुझे आपके इस मासकी १९ तारीखके उस पत्रकी पहुँच देनेका सम्मान प्राप्त हुआ है जो आपने श्री पारसी रुस्तमजीके साथ किये गये सलूक और अन्य मामलोंके सम्बन्धमें पिछले महीनेकी २३ तारीखको उपनिवेश-सचिवके नाम मेरे लिखे गये पत्रके उत्तरमें भेजा है। आपने मेरे संघको जो विस्तृत सूचना दी है उसके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ । श्री रुस्तमजीके अखबारोंको भेजे गये पत्रके विषयमें निवेदन है कि कई भारतीयोंने पैरोंमें बेड़ियाँ पहने देखा था और जिस दिन वे इस हालतमें देखे गये, उसी दिन इस मामलेकी सूचना मेरे संघको दे दी गई थी । चिकित्सा अधिकारीकी रायके बारेमें, मैं आपका ध्यान इस तथ्यकी ओर आकर्षित करना चाहूँगा कि फोक्सरस्टके चिकित्सा अधिकारीने श्री रुस्तमजीको अवश्य ही विशेष खूराक देनेकी हिदायत की थी। यदि डीपक्लूफ जेलसे रिहा हुए अनेक सत्याग्रहियोंकी बातका विश्वास किया जाये तो श्री रुस्तमजीकी यह बात भी निर्विवाद है कि डीप- क्लूफके चिकित्सा अधिकारीने उस भाषाका प्रयोग किया था जिसका आरोप श्री रुस्तमजीने १. इस पत्रका मसविदा अनुमानतः गांधीजीने तैयार किया था, और यह ब्रिटिश भारतीय संघके अध्यक्ष श्री अ० मु० काछलियाके हस्ताक्षरोंसे भेजा गया था । २. यह इंडियन ओपिनियन, २६-३-१९१० में उद्धृत किया गया था । ३. देखिए “पत्र: उपनिवेश-सचिवको”, पृठ १७१-७३ । ४. देखिए परिशिष्ट २ । Gandhi Heritage Portal